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देव दिवाली का क्या है महत्व, इस दिन क्यों किया जाता है दीपदान?…

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कार्तिक मास की पूर्णिमा को कार्तिक पूर्णिमा कहा जाता है. इस पूर्णिमा का शैव और वैष्णव दोनों ही सम्प्रदायों में बराबर महत्व है. इस दिन शिव जी ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था और विष्णु जी ने मत्स्य अवतार भी लिया था. इसलिए इसे देव दिवाली भी कहते हैं. इस दिन पवित्र नदियों में स्नान करने और दीपदान करने का विशेष महत्व है. इस दिन छह कृत्तिकाओं का पूजन भी किया जाता है. इस बार कार्तिक पूर्णिमा 29 और 30 नवंबर को है. पूर्णिमा की रात्रि पूजा 29 नवंबर को होगी. जबकि पूर्णिमा का स्नान और उपवास 30 नवंबर को किया जाएगा.

कार्तिक पूर्णिमा के दिन पवित्र नदी के जल से स्नान करके दीपदान करना चाहिए. पर ये दीपदान नदी के किनारे किया जाता है. इसका दीपावली से कोई संबंध नहीं है. लोकाचार की परंपरा होने के कारण वाराणसी में इस दिन गंगा किनारे वृहद स्तर पर दीपदान किया जाता है. इसको वाराणसी में देव दीपावली कहा जाता है, पर ये शास्त्रगत नहीं है.

भगवान शिव ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था. यह घटना कार्तिक मास की पूर्णिमा को हुई थी. त्रिपुरासुर के वध की खुशी में देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाए. यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है. चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी, इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है.

इस दिन छह कृत्तिकाओं का रात्रि में पूजन करना चाहिए. इस पूजा से संतान का शीघ्र वरदान मिलता है. ये छह कृत्तिकाएं हैं- शिवा, सम्भूति, संतति, प्रीति, अनुसूया और क्षमा. इनका पूजन करने के बाद गाय, भेंड़, घोड़ा और घी आदि का दान करना चाहिए. कृत्तिकाओं से संतान और सम्पन्नता प्राप्ति की प्रार्थना करनी चाहिए.

भगवान शिव ने इस दिन त्रिपुरासुर का वध किया था. इसलिए इस दिन को “त्रिपुरी पूर्णिमा” भी कहा जाता है. शिव जी की विशेष पूजा से इस दिन तमाम मनोकामनाएं पूरी होती हैं. इस दिन उपवास रखकर शिव जी की पूजा करके बैल का दान करने से शिव पद प्राप्त होता है. शिव ही आदि गुरू हैं, इसलिए इस दिन रात्रि जागरण करके शिव जी की उपासना करने से गुरू की कृपा प्राप्त होती है. गलतियों के प्रायश्चित के लिए भी इस दिन शिव जी की पूजा की जाती है.

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