Home शख़्सियत संजीव चतुर्वेदी

संजीव चतुर्वेदी

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संजीव चतुर्वेदी, जन्म- 21 दिसम्बर, 1974, वर्ष 2002 बैच के वन सेवा अधिकारी हैं, जिन्हें 2015 का रेमन मैग्सेसे पुरस्कार दिया गया है। वे दूसरे सर्विंग ब्यूरोक्रेट हैं, जिन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया है। इससे पहले किरण बेदी को यह पुरस्कार दिया गया था। संजीव चतुर्वेदी को यह पुरस्कार सार्वजनिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार के मामलों को उजागर करने के लिए दिया गया है। संजीव चतुर्वेदी के अतिरिक्त एनजीओ ‘गूंज’ के संस्थापक भारतीय अंशु गुप्ता को भी मैग्सेसे पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।

भ्रष्टाचार के विरोधी
संजीव चतुर्वेदी ने एम्स के सी.वी.ओ. रहते हुए भ्रष्टाचार के 200 से अधिक मामले उजागर किए। इनमें से 78 मामलों में सज़ा दी जा चुकी है। 87 मामलों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है और करीब 20 मामलों में सीबीआई की जांच शुरू हो गई है। संजीव चतुर्वेदी कहते हैं कि “वे व्यवस्था में सुधार चाहते हैं और उसी के लिए कार्य कर रहे हैं।” संजीव चतुर्वेदी जाने-माने व्हीसल ब्लोअर हैं। एम्स में उन्होंने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कई मामले उजागर किए थे। एम्स से हटाए जाने के बाद यह भी कहा गया था कि राजनैतिक उद्देश्य से उन्हें हटाया गया है। लगभग तीन हज़ार सात सौ पचास करोड़ की लागत से एम्स के विस्तार की योजनाओं में धांधली और कुछ लोगों को फ़ायदे पहुंचाने की कोशिश के विरुद्ध संजीव चतुर्वेदी ने सवाल खड़े किए थे, जिस कारण उन्हें पद से हटना पड़ा।

दूसरे सर्विंग ब्यूरोक्रेट
संजीव चतुर्वेदी ‘भारतीय वन सेवा’ के अधिकारी हैं। अखिल भारतीय सेवाओं में रहते हुए ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ पाने वाले वे दूसरे शख्स हैं। उनके पहले आईपीएस किरण बेदी को पद पर रहते हुए यह सम्मान मिला था। सरकारी सेवा में उनके बेहतरीन काम के लिए और उनके साथ समाजिक संस्था ‘गूंज’ चलाने वाले अंशु गुप्ता को सामुदायिक सेवा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए ‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ दिया गया है।

एम्स में आने के पहले संजीव चतुर्वेदी हरियाणा में तैनात थे। वहां भी उन्होंने भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कई मामले उजागर किए थे। उसके बाद वे एम्स के प्रमुख सतर्कता अधिकारी बने। रेमन मैग्सेसे फाउंडेशन ने उनके बारे में कहा है कि “संजीव चतुर्वेदी को उनके दायित्व के निर्वहन में प्रतिबद्धता, साहस और शासकीय सेवा में श्रेष्ठ कार्य के लिए सम्मानित करने का फ़ैसला किया गया है।”

प्रमुख तथ्य
‘रेमन मैग्सेसे पुरस्कार’ पाने वाले और अपने काम की वजह से लगातार चर्चा में रहने वाले जोशीले अफसर संजीव चतुर्वेदी के बारे प्रमुख तथ्य इस प्रकार हैं[1]-

संजीव चतुर्वेदी ने 1995 में मोतीलाल नेहरू इंस्‍टीट्यूट ऑफ़ टेक्‍नोलॉजी, इलाहाबाद से बी.टेक. किया था।
वे 2002 के आई.एफ.एस. अफ़सर हैं। वे मूलत: हरियाणा काडर के अफ़सर हैं।
पहली पोस्टिंग इन्‍हें कुरुक्षेत्र में मिली, जहां इन्‍होंने हांसी बुटाना नहर बनाने वाले ठेकेदारों पर एफ.आई.आर. दर्ज करवाई।
बतौर सी.वी.ओ., एम्‍स में संजीव चतुर्वेदी ने अपने दो साल के कार्यकाल में 150 से ज्‍यादा भ्रष्‍टाचार के मामले उजागर किए।
2014 में संजीव को स्‍वास्‍थ्‍य सचिव ने ईमानदार अधिकारी का तमगा दिया था।
भ्रष्टाचार के विरुद्ध किये जाने वाले अपने कार्यों के कारण पांच साल में 12 बार संजीव चतुर्वेदी का स्थानान्तरण हुआ।
वर्ष 2009 में हरियाणा के झज्जर और हिसार में वन घोटालों का पर्दाफाश इन्होंने किया था।
2009 में ही संजीव पर एक जूनियर अधिकारी संजीव तोमर को प्रताड़ित करने का आरोप लगा, हालांकि बाद में वह आरोप मुक्त हो गए।
2007-2008 में संजीव ने झज्जर में एक हर्बल पार्क के निर्माण में हुए घोटाले का पर्दाफाश किया, जिसमें मंत्री और विधायकों के अलावा कुछ अधिकारी भी शामिल थे।
2010 में उन्होंने राज्य सरकार से तंग आकर केंद्र में प्रति नियुक्ति की अर्जी दी थी। 2012 में उन्हें एम्स के डिप्टी डायरेक्टर का पद सौंपा गया। उन्हें एम्स के सी.वी.ओ. पद की भी ज़िम्मेदारी सौंपी गई।
केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद संजीव चतुर्वेदी को सी.वी.ओ. के पद से हटा दिया गया था, जिस पर काफ़ी विवाद भी हुआ।

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