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आँगनवाड़ी में पोषण-मटके की ‘टिम्बक टू’….

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आपको बचपन में पढ़ी कविता ‘टिम्बक-टू’ और उसमें बुढ़िया और वह मटका याद है? वही मटका, जिसमें बुढ़िया रामू के चीते-शेरों से बचते-बचाते अपनी ससुराल पहुँच गई थी। मटका उस बुढ़िया के बहुत काम आया था। मध्यप्रदेश में भी इन दिनों गाँव-गाँव में ऐसे ही मटके की चर्चा हो रही है। यह पोषण-मटका गाँव-गाँव में नजर आ रहा है। इस मटके में लोग खास चीजों को भर रहे हैं। वह भी एक खास वजह से और यह वजह है महिलाओं और बच्चों को पोषण के महत्व को बताना और साथ ही स्वास्थ्य और पोषण के लिये समुदाय को प्रोत्साहित करना। ‘पोषण-मटका’ लोगों के बीच अच्छी पोषण प्रथाओं के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिये आँगनवाड़ी कार्यकर्ताओं को शामिल करने वाला एक सामुदायिक दृष्टिकोण है।

मध्यप्रदेश में हर-एक आँगनवाड़ी में ‘पोषण-मटका’ अभियान आँगनवाड़ी की दीदियों द्वारा पोषण माह (हर वर्ष सितम्बर माह के रूप में मनाया जाता है) में चलाया जा रहा है। इसका व्यापक असर दिखायी दे रहा है। लोग मटके के माध्यम से खुद को आँगनवाड़ी से जोड़ रहे हैं। किसी के घर में सब्जी है, तो सब्जी, किसी के घर में अनाज है, तो अनाज, किसी के घर में दालें हैं, तो दाल, सब अपनी स्वेच्छा से, जो है, जितना है, ‘पोषण-मटके’ में भर रहे हैं। इससे दो फायदे हैं। सबसे बड़ा फायदा तो यह है कि समुदाय के लोग सीधे तौर पर आँगनवाड़ियों से जुड़ रहे हैं और दूसरा उनमें कमजोर बच्चों और महिलाओं के प्रति एक जागरूकता आ रही है, एक समझ विकसित हो रही है, कमजोरी दूर करने की, कुपोषण को दूर भगाने की, अपने समुदाय को सशक्त बनाने की। इस प्रयोग से लोगों के खान-पान में भी विविधता आ रही है।

‘पोषण-मटके’ का एक लाभ यह भी हो रहा है कि इसके माध्यम से स्थानीय पोषण आहारों का संग्रह हो रहा है, जो समुदाय के अति-कम वजन और कम वजन के कमजोर बच्चों और उनके परिजनों तक आँगनवाड़ी के माध्यम से पहुँच रहा है। इससे पोषण में विविधता भी आयेगी और कमजोर पोषण वाले बच्चों और महिलाओं की स्थिति भी मजबूत होगी। GIZ फाउण्डेशन के सर्वे अनुसार राज्य में ‘पोषण-मटका’ की शुरूआत से विभिन्न ब्लॉकों में कुल 9404 ‘पोषण-मटके’ बनाये गये हैं। कुल 39 हजार 220 लोगों-परिवारों ने मटके को खाद्यान्न से भरकर इस अभियान में योगदान दिया, कुल 36 हजार से ज्यादा परिवार ‘पोषण-मटका’ पहल के लाभार्थी बने। साठ प्रतिशत लोगों ने बताया कि ‘पोषण-मटका’ के माध्यम से एकत्र किये गये खाद्यान्न कम वजन वाले या अल्प-पोषित बच्चों वाले परिवार को दिये गये। चालीस प्रतिशत खाद्यान्न मुख्य रूप से गरीब परिवारों को दिया गया, जो सक्षम नहीं थे। इसका लाभ गर्भवती महिलाओं और उन परिवारों को भी मिला, जो अल्प-पोषित और कम वजन के थे। ‘पोषण-मटके’ में गेहूँ, चावल, बाजरा, ज्वार, चने, मूँगफली, मसूर, मक्का, दलिया, सोयाबीन एकत्रित किये गये। कुछ मटकों में गुड़, फल, हरी पत्तेदार सब्जियाँ भी एकत्र की गयीं।

मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान की मंशानुसार इस अभियान से समुदाय के बड़े किसानों को भी जोड़ने की पहल की जा रही है। उन्हें संकल्प दिलाया जा रहा है कि वे अपने क्षेत्र के कमजोर पोषण वाले बच्चों, महिलाओं, गर्भवती महिलाओं, खून की कमी वाले बच्चों और युवतियों को अपनी इच्छा और क्षमता अनुसार खाद्य सामग्रियाँ साझा करेंगे।

‘पोषण-मटका’ अभियान से जुड़ी श्योपुर जिले की सुपरवाइजर सुषमा सोनी कहती हैं कि इस अभियान को समुदाय से बहुत अच्छा रिस्पांस मिल रहा है। इसमें पुरुषों की भागीदारी भी हो रही है। वे कहती हैं कि बच्चा यदि कुपोषित है, तो केवल माता के कारण नहीं, बल्कि पोषण पर ध्यान देने की जिम्मेदारी माता-पिता दोनों की ही होती है। मंदसौर जिले के एक छोटे-से गाँव मुलतानपुरा में ‘पोषण-मटका’ नामक एक अनोखा अनाज बैंक बनाया गया है। इससे स्थानीय गरीब परिवारों को भोजन और पोषण संबंधी जरूरतों में मदद की जाती है। आँगनवाड़ी कार्यकर्ता अर्चना परमार ने इस अनाज बैंक को कुछ गरीब परिवारों को 50 किलो अनाज दान करके शुरू किया था।

पोषण मटका जैसी सामुदायिक पहल- सांस्कृतिक, आर्थिक समानता और प्रभावी हस्तक्षेप के सामाजिक मूल्यों को पहचानती हैं, जो स्थानीय रूप से सशक्त कार्रवाई और ‘पोषण अभियान’ में सामाजिक भागीदारी को बढ़ावा देती है।

 

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