प्रदेश में स्थापित वनों के संरक्षण और संवर्धन के लिए मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में प्रभावी पहल की गई है। इसी का परिणाम है कि वनों के साथ-साथ इस पर आश्रित ग्रामीणों की स्थिति में सुधार परिलक्षित हुआ है। वानिकी विकास की दिशा में अनेकानेक नीतिगत निर्णय लिए गए हैं, जिसके फलस्वरूप वन और वन्य-प्राणियों के बेहत्तर प्रबंधन के साथ ही वनों पर आश्रित वनवासियों के जीवन-स्तर में सुधार लाया जा सका है। यह सिलसिला अनवरत रूप से जारी है।
देश में सबसे अधिक बाघ इसी प्रदेश में है। पिछले साल बाघों की संख्या 526 होने के साथ प्रदेश को एक बार दोबारा टाईगर स्टेट का दर्जा मिला है। इसी तरह तेंदुओं की संख्या के मामले में भी हमारे प्रदेश ने कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्य को पीछे छोड़कर तेंदुआ स्टेट दर्जा मिलने का गौरव हासिल किया है। प्रदेश में 3 हजार 421 तेंदुओं की संख्या पाई गई। देश में उपलब्ध तेंदुओं की संख्या में से 25 प्रतिशत अकेले मध्यप्रदेश में पाए गए हैं।
प्रदेश में 13 राष्ट्रीय उद्यान और 24 अभ्यारण्य स्थित है। मुकुन्दपुर में सफेद बाघ सफारी, वन विहार राष्ट्रीय उद्यान-जू भोपाल और रायसेन में तितली पार्क है। वन्य-प्राणी संरक्षण के क्षेत्र में पर्यटकों के लिए बेहतर सुविधाएँ और अवसर उपलब्घ कराए गए हैं।
प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर मध्यप्रदेश में 94 हजार 689 वर्ग किलोमीटर (64,68,900 हेक्टेयर) कुल वन क्षेत्र है, जो राज्य के भू-भाग का 30.72 फीसदी और देश के कुल वन क्षेत्र का तकरीबन 12.38 फीसदी है।
प्रदेश की वन नीति-2005 से लागू है। वन विभाग दो मोर्चों पर एक साथ काम कर रहा है। वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा को प्राथमिकता में रखते हुए उनके संवर्धन के साथ वनों पर आश्रित ग्रामीणों के सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा में असरदार पहल की गई है।
राज्य सरकार का यह दृढ़ संकल्प है कि वानिकी के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग तक विभागीय योजनाओं का लाभ पहुँचना चाहिए, ताकि उन्हें मुख्य-धारा से जोड़कर आर्थिक रूप से समृद्ध किया जा सके। वन विभाग वनों की सुरक्षा और विकास के साथ-साथ वनों पर आश्रित वनवासियों के कल्याण के प्रति गंभीरता से कार्य कर रहा है।
7 करोड़ मानव दिवस का रोजगार
प्रदेश के ग्रामीण और आदिवासी बहुल क्षेत्रों में हरेक साल तकरीबन 7 करोड़ मानव दिवस का रोजगार उपलब्ध कराया जाता है। बाँस, चारा उत्पादन एवं लाख उत्पादन के माध्यम से एक लाख से अधिक ग्रामीणों को वानिकी गतिविधियों के माध्यम से आजीविका उपलब्ध कराई जा रही है। विभाग में प्रत्येक वन मण्डल द्वारा 10 वर्ष की कार्य-योजना तैयार कर वनों का प्रबंधन किया जाता है। योजना के माध्यम से कम घनत्व वाले वन क्षेत्रों में वनीकरण भी किया जाता है। इसके साथ ही बिगड़े वनों का सुधार एवं सघन वनों में पुनरउत्पादन के लिए सहायक वन वर्धनिक कार्य, सीमा एवं कठिन सुरक्षा के कार्य कराए जाते हैं।
आत्म-निर्भर म.प्र. में विभाग की गतिविधियाँ
प्रदेश सरकार ने आत्म-निर्भर मध्यप्रदेश रोडमैप-2023 के रूप में महत्वाकांक्षी पहल को मूर्त रूप देने के लिए वन विभाग द्वारा कार्य-योजना तैयार की जा रही है। इसमें ‘बफर में सफर’ मुहिम के माध्यम से मानसून पर्यटन को बढ़ावा, टाईगर सफारी विकसित करना, लकड़ी/बाँस के प्र-संस्करण और मूल्य संवर्धन के लिए दो विशेष आर्थिक क्षेत्रों का विकास, 20 बाँस कलस्टरों का व्यवस्थित विकास, प्रदेश की वनोपज का मध्यप्रदेश उत्पाद के रूप में जी.आई. रेगिंग, वनोपज के बेहतर मूल्य के लिए वनोपज मूल्य संवर्धन विकास, वन आधारित उद्यमों को प्रोत्साहन, उपयुक्त र्हैबिटेट में चीता को लाना, बाघों का घनत्व बढ़ाने और वन स्थिरता को बढ़ावा दिए जाने के लिए बाघों को अन्य राष्ट्रीय उद्यानों में शिफ्ट करना, वनों के बाहर बृक्ष आवरण बढ़ाने में शासकीय गैर वन भूमि पर वृक्षारोपण की पहल और भू-अभिलेखों का डिजिटलीकरण कर पारदर्शिता को बढ़ाने जैसे कार्य किये जायेंगे।
वन रोपणियों में पौध तैयारी
प्रदेश में 11 अनुसंधान और विस्तार वृत्तों की 170 अनुसंधान और विस्तार रोपणियों में विभिन्न प्रजाति के 4 करोड़ 13 लाख पौधे उपलब्ध हैं। विभागीय वृक्षारोपण एवं गैर-वानिकी क्षेत्रों में रोपण के लिए आवश्यक पौधो की तैयारी, उपलब्ध पौधों का रख-रखाव और अनुसंधान विस्तार नर्सरियों के उन्नयन का लक्ष्य रखा गया है। रोपणियों के पौधों के ऑनलाईन संधारण के लिए नर्सरी मैनजमेन्ट विकसित किया गया है। कुछ रोपणियों में सी.सी.टी.वी. कैमरे स्थापित कर रोपणियों की सुरक्षा और निगरानी की जा रही है।
संयुक्त वन प्रबन्धन
विभाग की कार्यप्रणाली में ‘जन’ का महत्वपूर्ण स्थान है। वन-जन को समन्वित कर वानिकी में भागीदारी का अंश बढ़ाने के साथ ही जन की सक्रियता बढ़ाने के उद्देश्य से संयुक्त वन प्रबंधन की विचारधारा को अपनाया गया है।
संयुक्त वन प्रबंधन में 10 हजार 141 ग्राम वन समिति, 4419 वन सुरक्षा समिति और 1044 ईको विकास समिति गठित हैं। वन समितियों की कुल संख्या 15 हजार 604 है। इनके माध्यम से 79 हजार 705 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्रों का प्रबंधन किया जा रहा है। वन समितियों में 33 प्रतिशत महिलाओं की सदस्यता आरक्षण के साथ ही अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के पद में से एक महिला की नियुक्ति अनिवार्य की जाकर महिला सशक्तिकरण को प्रभावी बनाया गया है।
वन संरक्षण तथा वन संवर्धन के प्रयासों में जन-भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए बसामन मामा स्मृति वन एवं वन्य-प्राणी संरक्षण योजना चालू है। इसके अलावा वन रक्षा एवं संवर्धन क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने वाली संस्थाओं और व्यक्तियों को ‘शहीद अमृता देवी विश्नोई’ पुरस्कार से नवाजा जाता है।
वन संरक्षण
विभाग वनों की सुरक्षा और अवैध कटाई को सख्ती से रोकने में जुटा हुआ है। वन अपराधों की गोपनीय सूचनाओं के लिए मुखविर तन्त्र को प्रभावी बनाया गया है। वन अपराधों की समय-सीमा में विवेचना के अनुश्रवण के लिए सूचना प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा रहा है।
वन्य-प्राणी संरक्षित क्षेत्रों में 1490 वायरलेस-सेट की लायसेंस को मंजूरी प्राप्त हो गई है। वन अपराधों की रोकथाम के लिए वृत्त मुख्यालय पर उडनदस्ता कार्यरत है। वन सुरक्षा में संयुक्त वन प्रबंधन समितियों का उपयोग भी किया जा रहा है। वन भूमि पर अतिक्रमण में बे-दखली के लिए भारतीय वन अधिनियम-1927 की धारा 80 (अ) में वैधानिक कार्रवाई कर वन भूमि को अतिक्रमण से मुक्त कराया जाता है।
संवेदनशील क्षेत्रों में सुरक्षा-निगरानी
संवेदनशील क्षेत्रों में 329 वन चौकी, 4 जल चौकी, 387 बैरियर और 53 अंतर्राष्ट्रीय बैरियर के माध्यम से सुरक्षा और निगरानी की जाती है। इसके अलावा मैदानी अमले को 12 बोर की 2600 नई पंप एक्शन बन्दूक, 900 वायना कुलर, साढ़े पाँच हजार मोबाईल सिम और वन क्षेत्र वालों को 286 रिलाल्वर उपलब्ध कराए गए हैं, साथ ही विशेष सशस्त्र बल की तीन कंपनी भी तैनात रहती है।
राज्य शासन, वन्य-प्राणियों द्वारा पहुँचाने वाली जनहानि और पशु हानि के ऐवज में त्वरित क्षतिपूर्ति उपलब्ध करा रहा है। वही वन्य-प्राणियों के स्वास्थ्य की बेहतर देख-रेख की जा रही है। वन्य-प्राणी संरक्षण तथा मानव वन्य-प्राणी द्वन्द्व को कम करने के लिए वन्य-प्राणी संरक्षण अधिनियम-1972 के प्रावधानों के अनुसार बाघों के क्रिटिकल रहवास क्षेत्रों ग्रामों का पुनर्स्थापन के लिए ग्रामों को चिन्हांकित कराकर पुनर्स्थापन प्रावधानित है। इसके लिए 10 लाख रूपये प्रति पुनर्वास इकाई की दर निर्धारित की गई है। यह पुनर्स्थापन संबंधित ग्राम के रहवासियों को सहमति बाद किया जाता है।
पंजीकृत वन्य-प्राणी अपराध प्रकरणों की सुनवाई के लिए एस.टी.एस.एफ द्वारा जबलपुर, इंदौर, होशंगाबाद, सागर और सतना में विशेष न्यायालय स्थापित है। प्रदेश को वन्य-प्राणी तस्कर को पकड़ने में उल्लेखनीय सफलता पर इंटरपोल द्वारा सराहना भी की गई है।