बहुविध कलानुशासनों की गतिविधियों एकाग्र गमक श्रृंखला अंतर्गत शनिवार को दोपहर रवींद्र भवन में सुश्रुत गुप्ता के निर्देशन में नाटक अंधेर नगरी का मंचन किया गया। सप्ताहांत प्रस्तुति में दोपहर में नाटक का मंचन एक नया प्रयोग था, जिसे दर्शकों की उपस्थिति ने सराहा। भारतेंदु हरिश्चंद्र लिखित इस नाटक का निर्देशन सुश्रुप्त गुप्ता ने किया, जबकि प्रस्तुति चिल्ड्रंस थियेटर अकादमी, भोपाल के कलाकारों ने दी। यह नाटक जहां हंसी-मजाक के साथ दर्शकों का मनोरंजन करता है, वहीं यह हमारे मूर्ख सत्ताधारियों पर कटाक्ष भी करता है।
नाटक में दिखाया गया कि गुरु और शिष्य तीर्थ यात्रा पर जाते हुए अंधेर नगरी में पहुंच जाते हैं, जहां सभी चीजों का मोल एक ही है अर्थात टके सेर भाजी व टके सेर खाजा। गुरु के मना करने पर भी शिष्य उसी नगरी में रुक जाता है। मूर्ख राजा के दरबार में एक फरियादी आता है, जिसकी बकरी को किसी ने मार डाला। मुजरिम को पकड़ कर लाया जाता है व उसे मौत की सजा सुनाई जाती है। फंदा बड़ा होने के कारण मुजरिम के गले में ठीक नहीं आता, तब राजा द्वारा निश्चित किया गया कि इसे छोड़ दो व ये फंदा जिसके गले में ठीक से आ जाए, उसे पकड़ कर फांसी पर चढ़ा दो। फंदा शिष्य के गले में ठीक आ जाता है, उसे उठा लिया जाता है। तभी उचित समय पर गुरुजी आ जाते हैं व शिष्य के द्वारा राजा तक ये बात पहुंचा देते हैं कि जो कोई भी व्यक्ति इस शुभ नक्षत्र में फांसी पर चढ़ेगा वह सीधा स्वर्ग में जाएगा। स्वर्ग में जाने के चक्कर में राजा खुद ही फांसी पर चढ़ जाता है। ये नाटक शिक्षा देता है कि जिस देश में मूर्ख व विद्वान दोनों को एक ही नजर से देखा जाए, उस देश में निवास नहीं करना चाहिए।