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प्यारेलाल खण्डेलवाल

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प्यारेलाल खण्डेलवाल  ‘भारतीय जनता पार्टी’ के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा के सांसद थे। वे आजीवन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के प्रचारक रहे थे। ‘भारतीय जनसंघ’ और फिर उसके बाद भाजपा, विशेषकर मध्य प्रदेश में, के पार्टी संगठन को खड़ा करने में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान था। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे के बाद प्यारेलाल खण्डेलवाल ही ऐसे व्यक्ति थे, जिनका अविभाजित मध्य प्रदेश में गहन सम्पर्क था। उन्होंने विवाह नहीं किया और आजीवन अविवाहित रहे। कुशाभाऊ ठाकरे के साथ खण्डेलवाल ने भी कार्यकर्ताओं को अंतिम समय तक संयम, धैर्य और सहिष्णुता की सीख देते हुए विचारधारा पर दृढ़ता से खड़े रहने का पाठ पढ़ाया था।

आज़ादी के लिए संघर्ष
प्यारेलाल खण्डेलवाल का जन्म 6 अप्रैल, 1929 को चारमंडली ग्राम, सीहोर ज़िला, मध्य प्रदेश में हुआ था। वे एक साधारण किसान परिवार से सम्बन्ध रखते थे। परतंत्र भारत में जन्म लेने वाले प्यारेलाल जी जब बाल्यावस्था में आये और उन्होंने देखा कि देश अंग्रेज़ों का ग़ुलाम हैं तो वे भारत की आज़ादी के लिए प्रयत्नशील हो उठे। मात्र ग्यारह वर्ष की अवस्था में 1940 में राष्ट्रवादी ध्येयनिष्ट संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के संपर्क में आने के बाद उन्हें अपने जीवन का लक्ष्य मिल गया। ‘भारत माता’ के लिए अपना तन, मन और धन समर्पित करके उन्होंने जीवन समर्पण की भावना रखकर अपने छात्र जीवन में ही सक्रीयता दिखाई। उन्होंने इन्दौर में क्रांतिकारियों और देशभक्तों के समूह, प्रजामंडल द्वारा प्रकाशित गुप्त पर्चों का वितरण एवं माहेश्वरी विद्यालय में विद्यार्थी आन्दोलन को अपना प्रखर नेतृत्व प्रदान करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि अब भारत की युवा शक्ति जागृत हो चुकी है। वन्देमातरम का नारा लगाने पर कठोर यातना और बेतों की सजा मिलने के बावजूद भी प्यारेलाल जी ‘भारत माता’ की आराधना में निरंतर लगे रहे। इसी के फलस्वरूप आगे चलकर स्वतंत्र भारत की राजनीति को दिशा देने का महत्त्वपूर्ण कार्य इस इंटर पास युवा के हाथों हुआ था।

संघ के प्रचारक
मध्य प्रदेश में ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के विस्तार से लेकर ‘भारतीय जनसंघ’ और ‘भारतीय जनता पार्टी’ की स्थापना में उन्होंने परस्पर पूरक की भूमिका का निर्वहन किया। सन 1948 में संघ के प्रचारक के रूप में ज़िम्मेदारी लेने के बाद प्यारेलाल खण्डेलवाल ने कभी पीछे मुडकर नहीं देखा। ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ का कार्य करते हुए एक वर्ष में ही दो बार शासन की नीतियों के ख़िलाफ़ सत्याग्रह करते हुए दो बार रतलाम और इन्दौर की जेल में भी बंदी रहे। यहाँ स्व. एकनाथ रानाडे जैसे देशभक्त मनीषी का सान्निध्य इन्हें प्राप्त हुआ। संघ कार्य में विभिन्न दायित्वों का निर्वाह करते हुए उन्होंने अनेक स्वयंसेवकों को ध्येय पथ पर अपने देश के लिए पूर्ण समर्पण कर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने कार्यकर्ताओं को यह भी समझाया कि ‘स्वयंसेवक’ का अर्थ क्या होता है।

नेतृत्व क्षमता
जब कश्मीर को लेकर तात्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की नीति अस्पष्ट ही थी, तब कश्मीर को भारत से जाता हुआ देखकर ‘भारतीय जनसंघ’ ने श्यामाप्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में सत्याग्रह का उद्धोष किया, जिसका नारा था- “एक देश दो विधान, दो निशान दो प्रधान, नहीं चलेंगे-नहीं चलेंगे।” केन्द्र की कांग्रेस सरकार के विरोध में कश्मीर के पक्ष में जो जन आन्दोलन प्रारंभ हुआ, उसमें प्यारेलाल जी मध्य प्रदेश में इस आन्दोलन के अगुआ बनकर उभरे। उन्हें मालूम हुआ कि उनके जत्थे को रावी नदी के तट पर ही गिरफ्तार कर लिया जाएगा। इस पर वे अपने साथियों के साथ पानी में उतर गए और नदी पार कर सत्याग्रह में शामिल हुए।

कुशल संगठनकर्ता
मध्य प्रदेश में ‘भारतीय जनता पार्टी’ का जो विशाल वट वृक्ष खडा है, उसे सींचने और उसकी देखभाल करने का महत्त्वपूर्ण कार्य कुशाभाऊ ठाकरे तथा प्यारेलाल खण्डेलवाल द्वारा किया गया था। इनके त्याग, तपस्या और समर्पण का ही परिणाम है कि आज मध्य प्रदेश में जगह-जगह पर ‘भाजपा’ जैसी राजनीतिक पार्टी के पास समर्पित कार्यकर्ताओं की एक-दो टोली नहीं, अपितु पूरी फ़ौज खड़ी नज़र आती है। प्यारेलाल जी न केवल कुशल संगठनकर्ता थे, बल्कि राजनीति युद्ध रचना किस प्रकार की जाती है, उसमें भी वे सिद्धहस्त थे। प्यारेलाल जी ने राजनीति में प्रवेश संभागीय संगठन मंत्री के रूप में किया था और 1972 में अविभाजित मध्य पदेश में ‘भारतीय जनसंघ’ के प्रदेश संगठन मंत्री बने थे। वे सन 1980 में राज्यसभा के सदस्य चुने गए थे।

मंत्री तथा राज्यसभा सदस्य
सन 1988 में मध्य प्रदेश में भाजपा के ‘ग्रामराज अभियान’ से जो सुदीर्घ आंदोलन प्रारम्भ हुआ था, उसमें हज़ारों कार्यकर्ताओं ने खण्डेलवाल जी के नेतृत्व में भाग लिया। यही अभियान 1990 में मध्य प्रदेश में भाजपा को बड़े भारी बहुमत से विजय दिलाने का आधार बना था। उन्होंने 1989 में प्रदेश के राजगढ़ संसदीय क्षेत्र से लोकसभा का चुनाव जीता था। इसके बाद वे भाजपा के मंत्री, उपाध्यक्ष और महामंत्री रहने के साथ कई प्रदेशों के प्रभारी भी रहे। प्यारेलाल खण्डेलवाल वर्ष 2004 में फिर से राज्यसभा सदस्य चुने गए थे। ‘भारतीय जनसंघ’ और उसके बाद ‘भाजपा’ विशेषकर मध्य प्रदेश में पार्टी संगठन को मजबूत करने में उनका ख़ासा योगदान था। पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे के बाद खण्डेलवाल ही ऐसे व्यक्ति थे, जिनका समूचे अविभाजित मध्य प्रदेश में गहन संपर्क था। प्यारेलाल जी को न केवल शहरी लोगों के दु:ख-दर्द की चिंता रही, बल्कि वे मध्य प्रदेश के वनवासी क्षेत्रों एवं हरिजनों को भाजपा से जोडने के लिए भी लगातार प्रयत्नशील थे। उन्होंने इन लोगों की समस्याओं को दूर करने लिए समय-समय पर अनेक आंदोलन आदि भी किए।[1]

पत्रिका की स्थापना
पंडित दीनदयाल उपाध्याय की स्मृति में ‘पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन’ की स्थापना का श्रेय भी प्यारेलाल खण्डेलवाल को प्राप्त है। केवल भाजपा की नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश में किसी राजनीतिक पार्टी की पत्रिका, जिसका पाठक वर्ग किसी भी अन्य पत्रिका की तुलना में हज़ारों की संख्या में था, ऐसी मासिक हिन्दी पत्रिका की स्थापना में प्यारेलाल जी कि भूमिका महत्त्वपूर्ण थी।

विभिन्न पदों पर कार्य
रूस, ब्रिटेन, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात और ताईवान आदि देशों की यात्रा करने वाले खण्डेलवाल जी ‘भारतीय जनता पार्टी’ में 1993 में हरियाणा प्रदेश के प्रभारी बनाये गए थे। 1996 में उड़ीसा तथा असम के प्रभारी भी बने। सन 1999 में भाजपा के राष्ट्रीय मंत्री, 2000 में राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं उत्तर प्रदेश के प्रभारी, 2002 में राष्ट्रीय महामंत्री (उड़ीसा), असम, पश्चिम बंगाल तथा उत्तर पूर्वी राज्यों के प्रभारी एवं 2003 में पुन: राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुने गए थे।

निधन
प्यारेलाल खण्डेलवाल का निधन 6 अक्टूबर, 2009 को ‘अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान चिकित्सा संस्थान’ (एम्स), दिल्ली में हुआ। उस समय आयु 82 वर्ष थी। भाजपा के आधार स्तम्भों में शामिल प्यारेलाल खण्डेलवाल जीवनभर सादगी, संस्कार और अपनी बेदाग़ छवि के लिए जाने जाते रहे। वे अपने संपूर्ण राजनीतिक जीवन में न कभी फिसले और न ही डगमगाए। उनके आदर्श, त्याग और तपस्या से पूर्ण संपूर्ण जीवन सदैव ‘भारतीय जनता पार्टी’ को सींचता रहेगा।

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