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स्व-सहायता समूहों के जरिए महिला स्वावलम्बन की नींव रखता मध्यप्रदेश….

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प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में व्यापक और प्रभावी पहल की है। मुख्यमंत्री श्री चौहान का मानना है कि आर्थिक स्वावलम्बन से ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त होता है। महिलाओं में उद्यमिता और कौशल के जो नैसर्गिक गुण होते हैं उससे महिलाएँ सहजता से आर्थिक स्वावलम्बन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेती हैं।

मुख्यमंत्री की इसी भावना के अनुरूप प्रदेश के 43 जिलों के 271 विकासखण्डों में मध्यप्रदेश दीनदयाल अंत्योदय योजना-राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन पर अमल किया जा रहा है। शेष 42 विकासखण्डों में गैर-सघन रूप से जिला पंचायतों के जरिए मिशन पर अमल हो रहा है। मध्यप्रदेश राज्य महिला वित्त एवं विकास निगम द्वारा भ्री प्रदेश में ‘तेजस्विनी’ ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। वर्ष 2007 से प्रदेश के छ: जिलों डिंडौरी, मण्डला, बालाघाट, पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ में आरंभ यह कार्यक्रम वर्ष 2018- 19 तक जारी रहेगा।

आजीविका मिशन की प्रमुख उपलब्धियाँ

मिशन के जरिए अब तक लगभग 23 लाख 28 हजार परिवारों को 2 लाख से ज्यादा स्व-सहायता समूह से जोड़ा जा चुका है। आज की स्थिति में करीब डेढ़ लाख से अधिक समूह सदस्य एक लाख से अधिक आय अर्जित कर रहे हैं। करीब 17 हजार ग्राम संगठन बनाये गये हैं, जिनमें एक लाख 18 हजार समूहों की सदस्यता है। साथ ही 346 संकुल-स्तरीय संगठन भी बनाये जा चुके हैं। विभिन्न जिलों में 31 सामुदायिक प्रशिक्षण केन्द्र संचालित हैं। स्व-सहायता समूहों की बुक-कीपिंग के लिये करीब 92 हजार बुक-कीपर्स प्रशिक्षित किये गये हैं। कम्युनिटी मोबलाइजेशन एवं कृषि गतिविधियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से लगभग 24 हजार समुदाय स्रोत व्यक्तियों का चिन्हांकन कर प्रशिक्षण दिया गया है। लगभग 6 लाख 27 हजार ग्रामीण बेरोजगार युवाओं को रोजगारोन्मुखी प्रशिक्षण, रोजगार मेला और आरसेटी के जरिए रोजगार के अवसर सुलभ कराये गये हैं। समूहों से जुड़े 35 हजार से ज्यादा हितग्राही मुख्यमंत्री आर्थिक कल्याण और मुख्यमंत्री स्व-रोजगार योजना से लाभान्वित हुए हैं। बैंकों से करीब रुपये 1911 करोड़ के बैंक ऋणों से 1,51,438 स्व-सहायता समूह लाभान्वित हुए हैं। समूहों का लेन-देन सरल करने की दृष्टि से 215 बैंक सखी एवं 374 बैंक बिजनेस करस्पॉन्डेंट प्रशिक्षित होकर कार्यशील हैं। प्रदेश के 24 जिलों में समुदाय आधारित बीमा सुरक्षा संस्थान गठित कर 81 हजार 647 सदस्य जोड़े जा चुके हैं।

मिशन द्वारा लगभग 5,000 महिलाओं को कम लागत की कृषि एवं जैविक कृषि के संबंध में प्रशिक्षित किया गया है। आज यह महिलाएँ न सिर्फ प्रदेश, बल्कि देश के अन्य प्रांतों यथा हरियाणा, उत्तरप्रदेश में भी कृषि कार्य में ग्रामीणों को सशक्त कर रही हैं।

मिशन की सबसे बड़ी उपलब्धि 14 लाख 48 हजार 940 परिवारों को आजीविका गतिविधियों से जोड़ना है। स्व-सहायता समूहों द्वारा उत्पादित सब्जियों एवं अन्य उत्पादों की बिक्री के लिये 442 आजीविका फ्रेश संचालित हैं। समूहों से जुड़े करीब डेढ़ लाख हितग्राहियों ने खरीफ सीजन में एसआरआई पद्धति से धान की फसल बोई, जिससे उत्पादन में लगभग दोगुना वृद्धि दर्ज हुई।

मिशन के दायरे में करीब पौने आठ लाख आजीविका पोषण-वाटिका (किचन-गार्डन) तैयार की गई हैं। करीब 6 लाख हितग्राहियों ने जैविक खेती को अपनाने के उद्देश्य से बर्मी पिट और नाडेप बनाये हैं। समूहों के माध्यम से 3 लाख 90 हजार से ज्यादा किसान व्यावसायिक सब्जी उत्पादन और 89 हजार से ज्यादा परिवार दुग्ध उत्पादन से जुड़ गये हैं। कुल डेढ़ लाख परिवारों ने आजीविका गतिविधियों का संवर्धन किया है।

आज की स्थिति में मिशन से जुड़े स्व-सहायता समूहों की करीब 12 हजार महिलाओं द्वारा परिसंघों के जरिये अथवा स्वतंत्र रूप से परिधान तैयार किये जा रहे हैं। वर्तमान में मिशन की 159 सेनेट्री नेपकिन इकाइयों से समूहों की 5,608 महिलाएँ जुड़ी हैं। सवा पाँच सौ अगरबत्ती उत्पादन केन्द्रों से 4,713 और साबुन निर्माण से 2,877 समूह सदस्य लाभान्वित हो रहे हैं। बीस जिलों के 65 विकासखण्डों में समूह सदस्यों द्वारा गुड़, मूंगफली, चिक्की आदि का निर्माण किया जा रहा है। हथकरघा कार्य से भी 1236 हितग्राही जुड़े हैं।

समूहों के वित्त पोषण की पहल

मिशन से जुड़े समूहों की संस्थागत क्षमताओं एवं वित्तीय प्रबंधन को मजबूत करने तथा सदस्यों की छोटी-मोटी आवश्यताओं की पूर्ति के लिये ग्रेडिंग के बाद प्रत्येक समूह को 10 से 15 हजार तक की राशि‍रिवाल्विंग फण्ड से दी जाती है। समूह की गरीब सदस्यों की जरूरतों के लिये पूँजी की उपलब्धता सामुदायिक संगठन/सामुदायिक निवेश निधि से सुनिश्चित की जाती है। यह राशि उपलब्धता के आधार पर ग्राम संगठन के 50 प्रतिशत समूहों को संख्या के मान से दी जाती है। एक आपदा कोष भी संचालित है, जिसका उपयोग अति गरीब वर्गों के व्यक्तियों एवं परिवारों को आने वाली आपदाओं का सामना करने में मदद के लिये किया जाता है।

मिशन के कार्यों का सम्मान एवं सराहना

मिशन में गठित 3 सर्वश्रेष्ठ समूह एवं एक ग्राम संगठन को केन्द्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा सम्मानित किया गया है। राष्ट्रीय आरसेटी दिवस पर भारत सरकार ने मिशन को स्व-रोजगार के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिये पुरस्कृत किया है। इसी वर्ष मिशन अन्य प्रदेशों की तुलना में आजीविका गतिविधियों के बेहतर संचालन के लिये राष्ट्रीय-स्तर पर पुरस्कृत हुआ है।

मिशन के अंतर्गत 37 उत्पादक कम्पनियाँ कार्यरत हैं। इनमें 29 कृषि आधारित, 4 दुग्ध और 4 मुर्गी-पालन से संबंधित हैं। बाड़ी विकास कार्यक्रम में बड़वानी में राजपुर, श्योपुर में कराहल एवं डिण्डोरी जिले के समनापुर में पाँच-पाँच सौ हितग्राही के साथ बाड़ी विकसित की गई है। अब तक प्रदेश में कुल 4,500 बाड़ी विकसित की जा चुकी हैं। विलेज टु कन्ज्युमर ऑनलाइन शॉप, डिजिटल प्लेटफार्म पर भी समूह के उत्पाद उपलब्ध हैं।

 

महिला सशक्तिकरण की सार्थक पहल ‘तेजस्विनी

इस कार्यक्रम का उद्देश्य मजबूत और निरन्तरता वाले महिला स्व-सहायता समूहों तथा उनकी शीर्ष संस्थाओं का गठन व विकास करना, इन समूहों और संस्थाओं को सूक्ष्म वित्तीय सुविधाओं से जोड़ना और समूहों को बेहतर आजीविका के अवसर तलाशने तथा इनका उपयोग करने के लिये योग्य बनाना है। कार्यक्रम का एक और उद्देश्य समूहों को सामाजिक समानता, न्याय और विकास की गतिविधियों के लिये सशक्त करना भी है। जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रबन्धन करना, कड़ी मजदूरी में कमी लाना, पंचायत में पूर्ण भागीदारी देना और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अपराध को समाप्त करना। तेजस्विनी योजना के पाँच प्रमुख घटक हैं -सामुदायिक संस्था विकास, सूक्ष्म वित्त सेवाएँ, आजीविका व उद्यमिता और विकास, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय एवं समानता और प्रोग्राम प्रबन्धन।

 

कार्यक्रम से दो लाख से अधिक महिलाएँ आर्थिक गतिविधियों से जुड़ीं

: जिलों में चलाये जा रहे इस कार्यक्रम में वर्ष 2016 -17 तक 16 हजार 261 महिला स्व-सहायता समूहों का गठन हो चुका है। इन समूहों से जुड़कर 2 लाख 05 हजार 644 महिलाएँ लाभ पा रही हैं। कार्यक्रम के तहत इन छ: जिलों में प्रत्येक ग्राम में चार से पाँच स्व-सहायता समूहों को मिलाकर एक ग्राम स्तरीय समितियाँ भी गठित की गई है। सभी छ: जिलों में वर्ष 2016-17 तक 2,682 गाँवों में कुल  2,629 ग्राम स्तरीय समितियाँ कार्यरत है।

स्व-सहायता समूहों की शीर्ष संस्थाओं के रूप में साठ स्थानों पर साठ फेडरेशन (परिसंघ) भी गठित किये गये हैं। प्रत्येक फेडरेशन में तीन से साढ़े तीन हजार तक महिला सदस्य हैं। फेडरेशन स्वतंत्र रूप से स्व-सहायता समूहों के गठन, सुदृढ़ीकरण और ग्रेडिंग का कार्य कर रहे हैं। फेडरेशन के सदस्यों को इसके लिये विधिवत प्रशिक्षित किया जाता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ में बजा कार्यक्रम के नवाचार का डंका

डिण्डोरी जिले में कोदो-कुटकी जैसे मोटे अनाज के स्व-सहायता समूह के माध्यम से विपणन के प्रभावी प्रबन्धन से जनजातीय आबादी वाले इलाकों में जीविकोपार्जन  का जो नवाचार तेजस्विनी योजना से आरम्भ हुआ था उसकी व्यापक चर्चा रही। महिला सशक्तिकरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय न्यूयार्क में जब वैश्विक समागम हुआ तो डिण्डोरी की तेजस्विनी स्व-सहायता समूह की श्रीमती रेखा पन्द्राम को न्यूयॉर्क आमंत्रित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की इस प्रस्तुति से तेजस्विनी स्व-सहायता समूह को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली।

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