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सुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी निर्माण ना रोक पाने के लिए केंद्र सरकार से कहा कि हर मामले की निगरानी नहीं कर सकते।…

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सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को दिल्ली में गैरकानूनी निर्माण ना रोक पाने के लिए केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार और सिविल एजेंसियों को फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि राजधानी में रहने वाले लोगों के फेफड़े खासकर बच्चों के फेफड़े सिर्फ अधिकारियों के काम ना कर पाने की वजह से खराब हो रहे हैं। अदालत ने अधिकारियों पर निशाना साधते हुए कहा कि दिल्ली के लोग प्रदूषण, पार्किंग और हरे-भरे इलाकों की कमी से जूझ रहे हैं क्योंकि अधिकारी गैरकानूनी निर्माण के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पा रहे हैं। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट दिल्ली कानून (स्पेशल प्रोविजन्स) एक्ट, 2006 की कानूनी वैधता पर सुनवाई कर रही है। ये एक्ट अवैध निर्माणों का सीलिंग से बचाव करता है।

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस मदन बी लोकुर और जस्टिस दीपक गुप्ता की बेंच ने कहा, “ दिल्ली के लोग परेशानी से गुजर रहे हैं। बच्चे परेशानी से गुजर रहे हैं। हमारे फेफड़े पहले ही खराब हो चुके हैं। हमारे बच्चों के फेफड़े भी खराब होंगे। क्यों? क्योंकि केंद्र सरकार, दिल्ली सरकार, दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी (डीडीए), दिल्ली नगरपालिका (एमसीडी) कहती हैं कि आप जो करना चाहते हैं कर लें, लेकिन हम कुछ नहीं करेंगे।”

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की तरफ से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एएनएस नदकरणी से कहा कि जब तक अधिकारी ये नहीं समझेंगे की दिल्ली की जनता अहम है, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। कोर्ट ने कहा, “दिल्ली के लोग भेड़ बकरी नहीं हैं। समाज में हर किसी की कुछ इज्जत है। इस मामले में अधिकारियों की तरफ से 2006 से ही लगातार चूक हो रही है। एडिशनल सॉलिसिटर जनरल नदकरणी ने कोर्ट को सुझाव दिया कि वो खुद अधिकारियों को उनकी जिम्मेदारी समय से निभाने के लिए कहें। साथ ही सबके कामों को खुद मॉनिटर करें।

इस पर बेंच ने कहा, “हम कोई पुलिसकर्मी नहीं है, हम ये क्यों करें? क्या सुप्रीम कोर्ट के पास और काम नहीं हैं?  नदकरणी ने तर्क दिया कि सुप्रीम कोर्ट पहले भी कई मामले अपनी निगरानी में पूरा कर चुका है। हालांकि, कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों पर हमें निगरानी करनी पड़ती है, क्योंकि सरकार खुद कुछ नहीं करती। कोर्ट ने कहा, “जब सुप्रीम कोर्ट कुछ कहती है, तो कहा जाता है कि ये कोर्ट दायरे से बाहर काम कर रही है, न्यायिक सक्रियता दिखा रही है। असल में ये हो रहा है। सरकार अपनी आंखे बंद कर सकती है, लेकिन हम नहीं। ये हमारा संवैधानिक कर्तव्य है।”

एएसजी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि दिल्ली की हालत काफी खराब हो चुकी है, लेकिन सरकार राजधानी को एक बार फिर व्यवस्थित और संगठित करना चाहती है।
उन्होंने कहा कि अवैध निर्माणों को सीलिंग से बचाने वाले दिल्ली स्पेशल प्रोविजन्स एक्ट, 2006 और इससे जुड़े कानूनों को खत्म करने से समस्या का हल नहीं होगा। साथ ही ये दिल्ली सरकार और स्थानीय संस्थानों का काम है कि इन कानूनों का ठीक ढंग से पालन हो। नदकरणी ने कोर्ट को भरोसा दिया कि केंद्र सरकार जल्द ही संबंधित अधिकारियों के साथ चर्चा कर के इस मामले को सुलझा लेगी। कोर्ट ने भी उम्मीद जताई की सीनियर अधिकारी जल्द ही इस मामले को सरकार, डीडीए और एमसीडी के साथ मीटिंग कर के निपटा लेंगे।

बेंच ने अवैध निर्माणों के इतिहास बताते हुए कहा कि दिल्ली में पिछले 30 सालों से अवैध निर्माण और काॅलोनियां बनी हैं। इन 30 सालों में सरकार ने क्या किया। एमसीडी इस दौरान दाएं, बाएं हर तरफ बिना किसी की चिंता के लाइसेंस बांटे जा रही थी। कोर्ट ने बताया कि आवासीय इलाकों में लंबे समय से व्यवसायिक निर्माणों का दुरुपयोग हो रहा है।

सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से गैरकानूनी व्यवसायिक निर्माणों के बारे में भी जानकारी मांगी। इस पर केन्द्र ने कहा कि ऐसे किसी भी निर्माण को हटाया जाएगा। बेंच ने साफ किया कि वे छोटे व्यापारी जो इलाके में दूध और ब्रेड बेचने जैसे छोटे काम करते हैं उन्हें परेशान नहीं किया जाएगा। हालांकि, कोर्ट की नजर उन पर है जो आवासीय इलाकों में भी बिना सुरक्षा के रेस्त्रां जैसा कारोबार चला रहे हैं। साथ ही कार शोरूम और कपड़े का व्यवसाय चलाने वालों को भी आवासीय इलाकों से जाना पड़ेगा।

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