International Tiger Day 2018 : ‘वह दो माह का है. वह भूखा है. डरा है. वह हैरान है कि क्या उसकी मां लौटेगी.’ गोली चलने की आवाज गूंजती है. ‘शायद अब वह (मां) नहीं रही!’ तभी टीवी स्क्रीन पर एक दु:खद संदेश उभरता है, ‘बस 1411 बचे’. वर्ष 2010 में एयरसेल के मशहूर प्रचार अभियान ‘सेव आवर टाइगर्स’ में व्याकुल, नन्हे शावक स्ट्रीपी की इस तस्वीर ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा. बहरहाल, आठ साल में संकट खत्म होता प्रतीत होता है. स्वतंत्र सामाजिक कार्यकर्ताओं, सरकारी नीतियों, वन्य जीव संरक्षण अधिनियम में सुधार और बढ़ती जागरुकता से बाघों की आबादी में सुधार आया और वर्ष 2014 में जब आखिरी बार बाघों की गणना हुई तब यह संख्या बढ़कर 2,226 पहुंच गयी.
रविवार को अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस पर भारत इस बात से खुद को दिलासा दे सकता है कि वह अब भी सबसे अधिक बाघों की आबादी वाला देश बना हुआ है. यह संख्या जहां देश के लिये गौरव की बात है, वहीं विशेषज्ञों का मानना है कि अवैध शिकार, घटते वन क्षेत्र और विकास परियोजनाओं से बाघों के प्राकृतिक वास स्थान का अतिक्रमण हो रहा है जिससे निपटने की आवश्यकता है. अगर उनसे निपटा नहीं गया तो भारत के इस राष्ट्रीय पशु का भविष्य संकट में होगा.
भारतीय वन्य जीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) के वरिष्ठ वन्यजीव वैज्ञानिक वाई वी झाला के अनुसार देश में बाघों के लिये पर्याप्त वन क्षेत्र है लेकिन समस्या उनके भोजन के आधार में है