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प्रतिभा पाटिल

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प्रतिभा देवी सिंह पाटिल स्वतंत्र भारत के 60 साल के इतिहास में, मध्य वित्त परिवार से उठकर देश के सर्वोच्च पद तक पहुँचने वाली प्रथम महिला राष्ट्रपति हैं। इन्हें भारत का बारहवाँ निर्वाचित राष्ट्रपति बनने का गौरव प्राप्त हुआ हैं। इनका राष्ट्रपति बनना नारी शक्ति के सन्दर्भ में एक महत्त्वपूर्ण अध्याय साबित हुआ है। भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में 21 जुलाई, 2007 का दिन इस कारण काफ़ी महत्त्वपूर्ण माना जाता रहेगा, क्योंकि देश की आज़ादी के साठ वर्ष बाद एक महिला को प्रथम बार एक राष्ट्रपति के रूप में निर्वाचित होने का मौक़ा मिला। 25 जुलाई, 2007 को श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने राष्ट्रपति पद की शपथ ग्रहण की और देश की प्रथम महिला बनने का गौरव भी प्राप्त कर लिया। प्रतिभा पाटिल कांग्रेस पार्टी के साथ काफ़ी लम्बे समय से जुड़ी रही हैं, और राष्ट्रपति पद के लिए चुने जाते समय वह राजस्थान की राज्यपाल थीं

जन्म एवं परिवार
प्रतिभा पाटिल का जन्म ‘जलगाँव’ के ‘नदगाँव’ नामक ग्राम में 19 दिसम्बर, 1934 को हुआ था। इनके पिता का नाम ‘नारायण राव पाटिल’ था, जो पेशे से सरकारी वकील थे। उस समय देश पराधीनता की जंजीरों में जकड़ा हुआ था। ऐसे में यह कल्पना करना कि देश स्वाधीन होगा और स्वाधीन भारत की महामहिम राष्ट्रपति नदगाँव ग्राम की एक बेटी बनेगी, सर्वथा असम्भव ही था।

विद्यार्थी जीवन
प्रतिभा पाटिल के पिता सरकारी वकील थे, इस कारण परिवार में बेटी की शिक्षा के लिए अनुकूल माहौल था। प्रतिभा पाटिल ने आरम्भिक शिक्षा नगरपालिका की प्राथमिक कन्या पाठशाला से आरम्भ की थी। कक्षा चार तक की पढ़ाई श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने उसी पाठशाला में की। फिर इन्होंने जलगाँव के नये अंग्रेज़ी स्कूल में कक्षा पाँच में दाखिला ले लिया। वर्तमान में उस स्कूल को ‘आर.आर. विद्यालय’ के नाम से जाना जाता है। विद्यालय स्तर की परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए भी प्रतिभा पाटिल ने अपने व्यक्तित्व का विकास अन्य गतिविधियों में लिप्त रहते हुए किया। भाषण, वाद-विवाद एवं खेलकूद की गतिविधियों में भी प्रतिभा पाटिल का वैशिष्ट्य भाव उभरकर सामने आया। वह मात्र शैक्षिक पुस्तकों में ही लिप्त नहीं रहती थीं, वरन् व्यक्तित्व के सभी पहलुओं की ओर उनका ध्यान था। प्रतिभा पाटिल को शास्त्रीय संगीत के प्रति भी गहरा लगाव था। टेबल टेनिस की भी वह निपुण खिलाड़ी थीं।

कुशल खिलाड़ी
जब प्रतिभा पाटिल ने जलगाँव के मूलजी जेठा (एम.जे. कॉलेज) विश्वविद्यालय में प्रवेश किया, तो उनका व्यक्तित्व किसी दब्बू नारी जैसा नहीं था। वह महाविद्यालय तक अपनी बहुमुखी प्रतिभा के कारण पहुँची थीं। उन्होंने टेबल टेनिस में महाविद्यालय और विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। एक कुशल खिलाड़ी के रूप में उन्होंने कई पुरस्कार भी प्राप्त किए। एम.ए. करने के बाद प्रतिभा पाटिल ने अपने कैरियर का चुनाव करके क़ानून की पढ़ाई करने का निश्चय किया। राजकीय महाविद्यालय जलगाँव से श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त की। यह भी उल्लेखनीय है कि सादगी की प्रतिमूर्ति प्रतिभा पाटिल को महाविद्यालय की ब्यूटी क्वीन (सौन्दर्य साम्राज्ञी) बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। इसके बाद उन्होंने विधि महाविद्यालय, मुम्बई से क़ानून की उपाधि प्राप्त की।

पिता का प्रभाव
किसी भी व्यक्ति की मानसिकता पर उसके आस-पास के माहौल, देश-काल एवं परिस्थितियों का समग्र प्रभाव पड़ता है। अत: यह सम्भव ही नहीं था कि प्रतिभा पाटिल इन सबसे अछूती रहतीं। फिर परिवार का माहौल भी ऐसा था, जहाँ समस्याओं तथा प्रश्नों को लेकर कई व्यक्ति उनके पिता के पास आते रहते थे। तब वकील पिता उनका क़ानूनी समाधान प्रस्तुत करते थे। प्रतिभा अपने पिता नारायण राव को लोगों की समस्याओं एवं सवालों का समाधान करते हुए देखा करती थीं। इस कारण लोगों की समस्याएँ दूर करने की अभिवृत्ति भी उनके स्वभाव में विकसित हो रही थी।

दाम्पत्य व व्यावसायिक जीवन
पाटिल परिवार की बेटी प्रतिभा पाटिल का पाणिग्रहण संस्कार डॉक्टर देवीसिंह रामसिंह शेखावत के साथ 31 वर्ष की उम्र में 7 जुलाई, 1965 को सम्पन्न हुआ था। पेशे से शिक्षक देवीसिंह शेखावत मूल रूप से राजस्थान के सीकर ज़िले के गाँव छोटी लोसल के निवासी थे, लेकिन काफ़ी समय पूर्व उनके पूर्वज जलगाँव (महाराष्ट्र) में स्थायी रूप से आ बसे थे। श्रीमती प्रतिभा पाटिल के एक बेटा और एक बेटी हैं। दोनों का विवाह हो चुका है। उनके बेटे का नाम ‘राजेन्द्र सिंह शेखावत’ और बेटी का नाम ‘ज्योति राठौर’ है। दादी एवं नानी के रूप में उन्हें आठ बच्चों का प्यार मिला है। प्रतिभा पाटिल ने विधि विश्वविद्यालय, मुम्बई से क़ानून की उपाधि प्राप्त करने के पश्चात् अपने पिता श्री नारायण राव पाटिल की भाँति वकालत करने लगीं। वकालत के पेशे के साथ-साथ जलगाँव की ग़रीब एवं आदिवासी महिलाओं के उत्थान में भी वह महत्त्वपूर्ण योगदान देने लगीं। उस समय तक श्रीमती प्रतिभा पाटिल का राजनीति में जाने का कोई इरादा नहीं था। वकालत का पेशा भी अच्छा चल रहा था। उन्होंने जलगाँव में अपनी एक स्वतंत्र पहचान सफल एडवोकेट के रूप में बना ली थी।

राजनीतिक जीवन
जब प्रतिभा पाटिल सामाजिक कार्यों से जुड़ी थीं, तब कांग्रेस के नेता अन्ना साहब केलकर ने उनमें छिपी राजनीतिक प्रतिभा को पहचाना। अन्ना साहब केलकर ने प्रतिभा को कांग्रेस से जोड़ लिया और वह पार्टी की कर्मनिष्ठ सदस्या बन गईं। लेकिन उस समय तक प्रतिभा पाटिल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएँ शून्य थीं। फिर आया 1962 का वह दौर, जो प्रतिभा पाटिल के जीवन की दशा और दिशा तय करने के लिए प्रारब्ध ने पूर्व निर्धारित कर रखा था। अन्ना साहब केलकर ने प्रतिभा को सक्रिय राजनीति में आने का निमंत्रण देते हुए विधानसभा चुनाव लड़ने का आग्रह किया। जलगाँव के एदलाबाद विधानसभा क्षेत्र से इन्हें कांग्रेस का टिकट प्राप्त हुआ। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के जलगाँव ज़िले में विधानसभा की एक सीट से ऐसे चेहरे को टिकट प्राप्त हुआ था, जिसे राजनीति का कोई अनुभव नहीं था। प्रतिभा की सादगी और निष्कलंक छवि ने एदलाबाद के मतदाताओं को रिझाने में पूरी मदद की। प्रतिभा ने भी चुनाव प्रचार में पूरी शक्ति लगा दी थी। लोग उनकी सभाओं में भारी तादाद में आ रहे थे और कांग्रेस की उस महिला उम्मीदवार के विचारों से प्रभावित हो रहे थे।

मंत्री पद
फिर प्रतिभा ने बड़े अन्तर से चुनाव की वैतरणी पार कर ली। एक ग़ैर राजनीतिक महिला ने सफलता का परचम लहराकर राजनीति में प्रवेश किया। इस प्रकार 1962 में मात्र 27 वर्ष की उम्र में ही प्रतिभा राजनीति में स्थापित हो गईं। 1967 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में उन्हें पुन: चुना गया। तब 1967 से 1972 तक इन्होंने बतौर राज्यमंत्री जन स्वास्थ्य, आवास, पर्यटन, संसदीय कार्य आदि महत्त्वपूर्ण विभाग सफलता के साथ सम्भाला। उनके कार्यों की प्रशंसा भी हुई। विभिन्न विभागों से जुड़े रहने का प्रतिभा को यह अतिरिक्त लाभ मिला कि उन्हें मंत्रालयिक प्रशासन का पूर्ण व्यावहारिक ज्ञान हो गया। वह 1972 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भी विजयी रहीं। इस बार उन्हें राज्य का कैबिनेट मंत्री बनाया गया। इन्होंने पर्यटन, समाज कल्याण और आवास विभागों की ज़िम्मेदारी सफलतापूर्वक निभाई।

राज्यसभा के लिए चुनाव
1979 में कांग्रेस पार्टी को महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में बहुमत नहीं प्राप्त हो सका। इसके बावजूद प्रतिभा पाटिल पुन: चुनाव जीतकर विधानसभा में पहुँची। तब जुलाई, 1979 से फ़रवरी, 1980 तक उन्होंने विपक्षी नेता की भूमिका अदा की। 1980 के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में प्रतिभा लगातार पाँचवीं बार विजयी हुईं। इस बार उन्होंने 1982 से 1985 तक कैबिनेट मंत्री के तौर पर ग्रामीण विकास, समाज कल्याण एवं नागरिक आपूर्ति तथा आवास मंत्रालयों का कार्यभार पूरी ज़िम्मेदारी के साथ सम्भाला। कांग्रेस के केन्द्रीय आलाकमान की दृष्टि प्रतिभा के कार्यों पर केन्द्रित थी। यही कारण है कि उनकी योग्यताओं को देखते हुए इन्हें राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य पर लाना आवश्यक समझा गया। इन्हें 1985 में राज्यसभा के लिए चुन लिया गया। 1986 में प्रतिभा को दो वर्ष के लिए राज्यसभा के उपसभापति पद का दायित्व सौंपा गया। इस नयी ज़िम्मेदारी को भी उन्होंने बखूबी अंजाम दिया। उन्होंने सदन संचालन का दायित्व पद की गरिमा के अनुकूल किया। 1990 में अपना कार्यकाल समाप्त होने तक प्रतिभा पाटिल राज्यसभा में रहीं। उसके बाद उन्होंने अपने गृह क्षेत्र जलगाँव में जाकर सामाजिक समस्याओं का समाधान करना आरम्भ कर दिया।

राज्यपाल का पद
1991 में कांग्रेस पार्टी ने श्रीमती प्रतिभा पाटिल को अमरावती सीट से लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार बनाया। यह कांग्रेस का इन पर किया गया विश्वास था। इसके पूर्व उन्हें कभी भी लोकसभा का टिकट प्राप्त नहीं हुआ था। अमरावती सीट से वह लोकसभा के लिए चुनी गईं। कांग्रेस पार्टी के लिए प्रतिभा पाटिने ने अपने जीवन के अमूल्य वर्ष दिये थे। उनकी समाज और कांग्रेस पार्टी के प्रति प्रतिबद्धता को देखते हुए 2004 में उन्हें एक सर्वथा नयी ज़िम्मेदारी प्रदान की गई। इस बार वह जनप्रतिनिधि नहीं थीं, बल्कि उनका चयन राजस्थान के राज्यपाल पद के लिए किया गया था। उस समय राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी की सरकार थी और वहाँ बतौर महिला मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया थीं।

संकटकालीन परिस्थितियाँ
श्रीमती प्रतिभा पाटिल को राजस्थान के राज्यपाल के रूप में कार्य करने का कोई पूर्व अनुभव नहीं था, तथापि वे राज्यपाल पद की गरिमा के विषय में पूर्ण जानकारी रखती थीं। बहरहाल उनका राजस्थान का राज्यपाल बनना इस दृष्टि से चुनौतीपूर्ण कार्य था, कि वहाँ भारतीय जनता पार्टी की लोकतांत्रिक सरकार थी और स्वयं प्रतिभा पाटिल पूर्व में कांग्रेस की राष्ट्रीय स्तर की राजनीतिज्ञ रह चुकी थीं। राजस्थान की राज्यपाल के रूप में उन्होंने न केवल अपने कर्तव्यों को अच्छी तरह अंजाम दिया, बल्कि भारतीय जनता पार्टी की लोकतांत्रिक सरकार के साथ मज़बूती से खड़ी भी नजर आईं। राज्यपाल के रूप में श्रीमती प्रतिभा पाटिल का मर्यादित आचरण प्रशंसा का विषय तब बना, जब राजस्थान में गुर्जरों ने आरक्षण की माँग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किए और सड़क तथा रेल मार्ग को बाधित कर दिया। उससे एक क़दम आगे बढ़कर यह भी हुआ कि मीणा समाज के लोग जनजाति आरक्षण में बँटवारे का विरोध करने के लिए गुर्जर समाज के मुकाबले में आ खड़े हुए। कुछ स्थानों पर दोनों समुदायों में हिंसक टकराव भी हुआ। राजस्थान जैसा शान्त प्रदेश आरक्षण के कारण जातीय हिंसा की चपेट में आ गया था। राजनीतिक दूरदर्शिता से ही इस टकराव को टाला जा सकता था।

धैर्यपूर्ण व्यक्तित्व
यह वह समय था, जब सम्पूर्ण प्रदेश और देश की निगाहें प्रतिभा पाटिल पर लगी थीं। लोगों को उम्मीद थी कि ‘लॉ एण्ड ऑर्डर’ के पूर्णतया विफल होने पर राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति शासन की अनुशंसा की जाएगी। लेकिन प्रतिभा पाटिल ने लोकतांत्रिक सरकार को मौक़ा दिया कि वह प्रदेश में क़ानून व्यवस्था को पुन: पटरी पर लाए। वह भी तब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने राजस्थान की प्रशासनिक स्थिति पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। यदि कोई अन्य दुराग्रही राज्यपाल होता, तो सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी को ढाल बनाकर राजस्थान में राष्ट्रपति शासन लागू करने की अनुशंसा कर सकता था, लेकिन श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने ऐसा नहीं किया। केन्द्र में यू.पी.ए. गठबंधन वाली सरकार थी और वाम मोर्चा उसके साथ था। निवर्तमान राष्ट्रपति ए.पी. जे. अब्दुल कलाम का कार्यकाल समाप्त होने के बाद उन्हें पुन: राष्ट्रपति चुना जा सकता था। कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांधी चाहती थीं, कि सर्वदलीय सहमति से राष्ट्रपति पद के लिए नाम तय कर लिया जाए। इस दिशा में उन्होंने अपनी ओर से पहल करके भाजपा तथा अन्य राजनीतिक पार्टियों से इस विषय पर चर्चा करने का प्रस्ताव किया।

राष्ट्रपति कलाम की अनिच्छा
इसमें कोई सन्देह नहीं था, कि यदि ‘मिसाइल मैन’ ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के नाम पर आम सहमति का प्रस्ताव आगे बढ़ता तो उनका लगातार दूसरा कार्यकाल निश्चित था। लेकिन कुछ समय पहले जब ‘मिसाइल मैन’, राष्ट्रपति अब्दुल कलाम से पुन: राष्ट्रपति बनने के विषय में मीडिया ने पूछा तो उन्होंने अनिच्छा ज़ाहिर कर दी। इस कारण श्रीमती सोनिया गांधी के सामने उनके नाम पर मज़बूती से विचार किए जाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी। महान् व्यक्तित्व और कृतित्व के धनी अब्दुल कलाम भारत के सच्चे सपूत हैं। उनका सम्पूर्ण जीवन भारत की उन्नति के प्रयासों में ही गुजरा है। कई राजनीतिक समीक्षकों का अनुमान है कि यदि मिसाइल मैन के सन्दर्भ में विपक्ष ने उस समय सोनिया गांधी से बातचीत की होती, जब सर्वसम्मति से राष्ट्रपति निर्वाचित करने का प्रस्ताव किया गया था, तो उनके नाम पर आम सहमति अवश्य बन जाती। लेकिन विपक्ष द्वारा प्रस्ताव ठुकरा दिये जाने के कारण मिसाइल मैन के पुन: राष्ट्रपति बनने की सम्भावना धूमिल हो गई।

राष्ट्रपति का पद
राष्ट्रपति पद के लिए यूँ तो कई नामों पर चर्चा की गई, लेकिन अन्त में दो नाम रह गए थे, जो यू.पी.ए. और वाम मोर्चा द्वारा अन्तिम रूप से विचारित होने थे। दोनों नाम महिला उम्मीदवारों के थे-एक, गांधीवादी विचारधारा वाली निर्मला देशपाण्डे और दूसरी, राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल। फिर श्रीमती प्रतिभा पाटिल के नाम पर दोनों दलों द्वारा सहमति होते ही विपक्ष की राय लेने का इंतज़ार नहीं किया गया। प्रतिभा पाटिल की उम्मीदवारी घोषित होने के पश्चात् बसपा सुप्रीमो और उत्तर प्रदेश की तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने प्रतिभा पाटिल को समर्थन देने का भरोसा दिलाया, जो यू.पी.ए. तथा तथा वामदलों के लिए राहत का सन्देश था। इसी प्रकार महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख बाल ठाकरे ने भी महाराष्ट्रियन महिला के राष्ट्रपति बनने की राह को हमवार बनाने का इरादा ज़ाहिर कर दिया। इससे प्रतिभा पाटिल का राष्ट्रपति भवन में जाना निश्चित हो गया।

पद व गोपनीयता की शपथ
14 जून, 2007 को नाटकीय घटनाक्रम के बाद अन्तत: यू.पी.ए. और वामदलों ने राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार का नाम अन्तिम रूप से तय कर लिया। वह नाम था-राजस्थान की तत्कालीन राज्यपाल श्रीमती प्रतिभा पाटिल शेखावत का। श्रीमती प्रतिभा पाटिल से माउंट आबू में फोन पर बात करके उन्हें राष्ट्रपति पद हेतु उम्मीदवार बनाये जाने की जानकारी दी गई। प्रतिभा पाटिल ने कुछ क्षण हैरानी में गुजारने के बाद अपनी स्वीकृति दे दी। तब मीडिया को राष्ट्रपति पद हेतु प्रत्याशी की जानकारी दी गई। इस प्रकार एक माह से चल रही वार्ताओं और अनिश्चितताओं पर विराम लग गया। नवनिर्वाचित राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने बुधवार 25 जुलाई, 2007 को औपचारिक रूप से देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद का दायित्व ग्रहण किया। उन्हें दोपहर के 2.30 बजे संसद के केन्द्रीय भवन में मुख्य न्यायाधीश के.जी. बालाकृष्णन ने पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसके साथ ही ए.पी. जे. अब्दुल कलाम भी औपचारिक रूप से राष्ट्रपति भवन से विदा हो गए। श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने अंग्रेज़ी में शपथ ग्रहण की।

शपथ लेने के बाद श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने परम्परा का निर्वाह करते हुए निवर्तमान राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम से सीट परिवर्तित की। तभी उनके सम्मान में संसद के बाहर 21 तोपों की ध्वनि गूँज उठी। यह कार्यक्रम

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