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Movie Review: ‘बाबुमोशाय बंदूकबाज’….

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नई दिल्‍ली: निर्देशक : कुणाण नंदी
कास्‍ट : नवाजुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग, दिव्या दत्ता, मुरली शर्मा, जतिन गोस्वामी, श्रद्धा दास, भगवान तिवारी.
रेटिंग : 2.5 स्‍टार

कहानी
फिल्‍म लीक होने की खबरों के बीच शुक्रवार को रिलीज हुई है नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्‍म ‘बाबुमोशाय बंदूकबाज’. इस फिल्‍म की कहानी का फलसफा है कि जो कर्म आप करते हैं वो लौटकर एक दिन आपके पास जरूर आता है. ‘बाबूमोशाय बंदूकबाज’ की कहानी में बाबू (नवाजुद्दीन सिद्दीकी) एक कांट्रैक्ट किलर है और एक महिल नेता जिजी ( दिव्या दत्ता) के लिए काम करता है. लेकिन किसी बात पर जिजी और बाबू के बीच बात बिगड़ जाती है और वो उन्हीं के गुर्गों को मारने का ठेका ले लेता है. इसी दुश्‍मनी के बाद शुरू होता है, डबल क्रॉस, ट्रिपल क्रॉस, लव सेक्स एंड धोखा, और इन सब के शिकार होते हैं फुलवा ( बिदिता बाग), बांके (जतिन गोस्वामी) जैसे कई किरदार.

इस फिल्‍म में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, बिदिता बाग, दिव्या दत्ता, मुरली शर्मा, जतिन गोस्वामी, अनिल जॉर्ज, श्रद्धा दास और भगवान तिवारी जैसे कलाकार नजर आ रहे हैं. इस फिल्‍म का निर्देशन किया है कुषाण नंदी ने और इसे लिखा है लेखक गालिब असद भोपाली ने.

खामियां
इस फिल्‍म की खामी है इसकी कहानी, जिसमें ज्‍यादा दम नहीं है. नेताओं के लिए काम करने वाले कॉन्‍ट्रैक्‍ट किलर और फिर डबल क्रॉस जैसी कहानियां दर्शक पहले काफी देख चुके हैं और इसी वजह से फिल्‍म की कहानी, जो की किसी भी फिल्म का आधार होती है, उसमें नयापन नजर नहीं आता है. दूसरी बड़ी कमी इस फिल्‍म का स्‍क्रीनप्‍ले, जो कई जगह फिल्म में आपको झटके देता है. खासकर फिल्‍म के क्‍लाइमैक्‍स में. आखिर तक आते-आते फिल्‍म लम्बी भी लगने लगती है क्योंकि यहां निर्देशक और कहानीकार को मुख्य किरदार का निजी हिसाब किताब भी पूरा करना था. एक बार जब सारे राज खुल जाते हैं उसके बाद की फिल्‍म आपको आकर्षित नहीं करती. एक और बात यह कि फिल्‍म के टाइटल में ‘बाबूमोशाय’ क्यों जोड़ा गया है ये समझ नहीं आया. नाम सुनकर मुझे लगा था ये कहानी शायद बंगाल में सेट होगी पर ये कहानी उत्तर प्रदेश में सेट है. नाम आपको भ्रमित कर कुछ और उम्मीदें बांधता है जो फिल्‍म के लिए ठीक नहीं है.

खूबियां
इस फिल्‍म की सबसे बड़ी खूबी है इसके ट्विस्ट एंड टर्न्स यानी फिल्‍म के मोड़ जो फिल्‍म में आपका इंटरेस्‍ट बनाए रखने में मदद करते हैं. वहीं दूसरी बड़ी खूबी है फिल्‍म के कलाकारों की एक्टिंग जिसमें बिदिता बाग, जतिन गोस्वामी, भगवान तिवारी आपको अपने बेहतरीन अभिनय से बांध कर रखते हैं. नवाजुद्दीन की बात करें तो वह एक बेहतरीन अभिनेता हैं और यहां भी उनका काम अच्छा है. लेकिन इस बार वह आपको चौंका नहीं पाते जिसकी वजह है उनके किरदार  का खाका, जो लगभग हर फिल्‍म में एक जैसा होता है. यानी वैसा ही किरदार जैसा, ‘गैंग्‍स ऑफ वासेपुर’, ‘बदलापुर’, ‘हरामखोर’ और ‘रघु रमन’ में था. फिल्‍म की पृष्ठभूमि यानी देश के जिस हिस्से में कहानी सेट है और वहां की भाषा, किरदार और फिल्‍म को वास्तविकता के और करीब लाती है. फिल्‍म का संगीत ठीक है पर सिर्फ याद रहता है ढोंगी फ़िल्म का गाना ‘घूँघटा’ जिसे रीमिक्स किया गया है.

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