मुख्यमंत्री श्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि प्रदेश सरकार जल विद्युत क्षमता के तीव्र दोहन को उच्च प्राथमिकता दे रही है जो प्रदेश के आर्थिक विकास के लिए अति-महत्वपूर्ण है। मुख्यमंत्री आज यहां हिमाचल प्रदेश पावर कारपोरेशन लिमिटेड तथा प्रदेश के विभिन्न नदी तटों के जल विद्युत निर्माताओं व अन्य हितधारकों द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित सेमीनार की अध्यक्षता कर रहे थे । इस आयोजन को जल विद्युत क्षेत्र के विकास के लिए एक आवश्यक पहल करार देते हुए उन्होंने कहा कि प्रदेश में जल विद्युत क्षमता के दोहन के लिए जल विद्युत नीति में शीघ्रातिशीघ्र आवश्यक परिवर्तन किए जाने चाहिएं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि विद्युत क्षेत्र आर्थिक विकास की दिशा में महत्वपूर्ण है क्योंकि अन्य सभी क्षेत्र विद्युत की उपलब्धता पर निर्भर हैं। प्रदेश सरकार इस तथ्य से भली-भांति परिचित है तथा जल विद्युत क्षेत्र को उच्च प्राथमिकता प्रदान कर रही है और इससे दूरदराज के क्षेत्रों में विकास सुनिश्चित होगा तथा प्रदेश के राजस्व में बढ़ौतरी का मुख्य संसाधन होगा।
उन्होंने कहा कि यद्यपि गत वर्षों में जल विद्युत क्षेत्र में गिरावट आई है लेकिन यह कोई चिन्ता का विषय नहीं बल्कि यह प्रकिया का ही हिस्सा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को हर सम्भव सहायता प्रदान करेगी जो प्रदेश की आर्थिकी का एक मुख्य संसाधन है। उन्होंने कहा कि प्रदेश को राज्य के प्रत्येक भाग में विश्वसनीय एवं गुणात्मक विद्युत आपूर्ति करने का गौरव है जहां बहुत पहले शत-प्रतिशत राजस्व गांवों को बिजली की सुविधा प्रदान की जा चुकी है। उन्होंने कहा कि केवल यही नहीं, राज्य के उपभोक्ताओं को देश भर में सबसे कम दरों पर बिजली प्रदान की जा रही है।
श्री वीरभद्र सिंह ने कहा कि सरकार शेष क्षमता का इस तरीके से दोहन करने को प्राथमिक दे रही है जिससे राज्य को और अधिक राजस्व प्राप्त हो। इस लक्ष्य को हासिल करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार के सार्वजनिक उपक्रमों तथा निजी क्षेत्र, दोनों की जल विद्युत विकास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर सहभागिता सुनिश्चित बनाने की पहल की गई है। उन्होंने रेखांकित करते हुए कहा कि जल विद्युत परियोजनाओं के निष्पादन के दौरान मुख्य पहलुओं के आंकलन की आवश्यकता तथा निरन्तरता, पर्यावरण के अनुकूल विकास के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन की संभावनाओं की अनुकूलता के अनुरूप परिस्थितियों से निपटने पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
मुख्यमंत्री ने कहा कि जल विद्युत के उत्पादन जैसे महत्वकांक्षी कार्यक्रम को शुरू करने के लिए राज्य सरकार ने वर्ष 2006 में अलग से अपनी जल विद्युत नीति बनाई है। नीति का निर्माण लोगों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित बनाना तथा पारिस्थितिकीय एवं पर्यावरण सुरक्षा के नाजुक संतुलन को बनाए रखना है।
अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री तरूण श्रीधर ने कहा कि राज्य सरकार ने जल विद्युत क्षेत्र के पुनरूद्धार के लिए प्रभावी कदम उठाने के उद्देश्य से एक समिति का गठन किया है। सरकार ने ऊर्जा उत्पादकों की सुविधा के लिए अनेक प्रोत्साहनों की पेशकश भी की है। उन्होंने ऊर्जा उत्पादकों से इस क्षेत्र के पुनर्जीवन के लिए सरकार को सहयोग प्रदान करने का आग्रह किया।
केन्द्रीय जल आयोग के पूर्व अध्यक्ष श्री ए.बी. पाण्डेय ने अपने मुख्य भाषण में केन्द्र तथा राज्य सरकारों द्वारा स्वीकृतियों में देरी के मामलों पर गंभीरतापूर्वक विचार करने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह एक एक मुख्य मुद्दा है। आवंटन में पारदर्शिता सुनिश्चित बनाने के साथ-साथ परियोजनाएं आंरभ करने के लिये ठोस योजना तथा गहन जांच अन्य महत्वपूर्ण पहलू हैं। उन्होंने कहा कि इस सम्बन्ध में एक ठोस नीति की आवश्यकता है, जो जल विद्युत ऊर्जा के लाभ प्राप्त करने में सक्षम हो, जिसके लिए सम्बन्धित समुदाय को भी आवाज उठानी चाहिए।
उन्होंने कहा कि लोगों का सक्रिय समर्थन प्राप्त किया जाना चाहिए, क्योंकि अन्ततः लोग ही इससे लाभान्वित होंगे।
एचपीपीसीएल के प्रबन्ध निदेशक श्री देवेश कुमार ने सेमिनार आयोजित करने के उद्देश्य तथा राज्य सरकार द्वारा जल विद्युत क्षेत्र के पुनरुद्धार के किए जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डाला।
कृषि एवं ऊर्जा मंत्री श्री सुजान सिंह पठानिया, अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री तरूण श्रीधर, डॉ. श्रीकांत बाल्दी तथा श्री तरूण कपूर भी इस अवसर पर उपस्थित थे।