किसी भी थ्रिलर फिल्म को दिलचस्प बनाने के लिए कई चीज़ों की जरूरत पड़ती है. एक तेज़ तर्रार कहानी, हैरत में डाल देने वाला सस्पेंस. साथ ही सधी हुई एक्टिंग और निर्देशन किसी भी थ्रिलर फिल्म को क्लासिक का दर्जा दिला सकता है. लेकिन सनी देओल और करण कपाड़िया की फिल्म ब्लैंक कई मायनों में चूक जाती है. ब्लैंक इसी शुक्रवार रिलीज हुई है. इस फिल्म से डिंपल कपाड़िया के भांजे, करण कपाड़िया ने डेब्यू किया है.
ब्लैंक की कहानी एक ईमानदार पुलिस ऑफिसर सिद्धू दीवान (सनी देओल) की, जो एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड का हेड है. वो अपनी ड्यूटी को लेकर इतना वफादार है कि वो इस मामले में किसी को नहीं बख्शता, चाहे उसका परिवार ही क्यों ना हो. दीवान को एक बेहद अजीब स्थिति का सामना करना पड़ता है जब एक जख्मी शख़्स (करण कपाड़िया) बेहोशी की हालत में अस्पताल पहुंचता है.इस शख्स की छाती पर बम लगा है. उसकी धड़कन पर बॉम्ब की टाइमिंग सेट की गई है. सिद्धू को समझ आ जाता है कि अगर इस शख्स का दिल धड़कना बंद हुआ तो बम फट जाएगा. मुंबई शहर पर एक बड़ा खतरा मंडरा रहा है. और परेशानी भरी स्थिति ये भी है कि ये करण जो आतंकी है, अपनी याददाशत खो चुका है और उसे नहीं पता कि वो एक आतंकवादी है या नहीं.
खतरा केवल यही तक सीमित नहीं है. एटीएस को एहसास होता है कि मुंबई शहर को बर्बादी से पहले बचाना होगा. सनी देओल अपने 90 के दशक के हीरो वाले अंदाज़ में आतंकवाद पर काबू पाने के लिए निकल पड़ते हैं और कई आतंकियों की राइफल के सामने सनी की छोटी सी रिवॉल्वर भारी पड़ती है.
सनी देओल यूं तो कुछ सीन्स में प्रभावित करते हैं, लेकिन कई सीन्स में वे जमते नहीं हैं. फिल्म के मेकर्स कहीं ना कहीं ये भूल जाते हैं कि अब बॉलीवुड में बीस साल पुराना दौर नहीं रह गया है और फिल्मों में मेलोड्रामा की जगह लोग रियलिज्म को लेकर सतर्क हो गए हैं.
डिंपल कपाड़िया के कजन करण कपाड़िया बॉलीवुड में अपनी पहली परफॉर्मेंस से प्रभावित करते हैं. उन्हें देखकर ऐसा नहीं लगता कि वे दर्शकों को इंप्रेस करने के लिए बहुत ज्यादा कोशिश कर रहे हैं. फिल्म की शुरुआत में जब प्लॉट बदलता है तो कहानी को लेकर दिलचस्पी बढ़ती है और ऐसा सिर्फ करण की परफॉर्मेंस की वजह से ही संभव हो पाता है.
दुर्भाग्य से करण कपाड़िया की परफॉर्मेंस एक बेहद कंफ्यूज कहानी के नीचे दब जाती है. इसके अलावा फिल्म में ईशिता दत्ता ने भी एक्टिंग की है, लेकिन वो पूरी तरह से वेस्ट नजर आती हैं. ब्लैंक एक अच्छी थ्रिलर फिल्म हो सकती थी, मगर स्क्रिप्ट की कमियों और अतिउत्साहित सनी देओल इस फिल्म की कहीं ना कहीं लय बिगाड़ देते हैं.