आप सभी को बता दें कि आज प्रदोष व्रत है और सनातन परंपरा में भगवान शिव का महत्व बेहद विशेष है. ऐसे में हिंदू मान्यताओं के अनुसार जहां भगवान ब्रह्मा सृजनकर्ता और भगवान विष्णु पालनहार हैं तो वहीं, शिव विनाशक हैं. अब प्रदोष व्रत के दिन आज हम आपको बताएंगे कैसे हुआ था शिव जी का जन्म.
एक कथा के अनुसार भगवान शिव दरअसल भगवान ब्रह्मा और विष्णु के बीच हुए एक विवाद के बाद आये. ये दोनों देवता इस बात पर बहस कर रहे थे कि सर्वोपरि कौन है. इस विवाद के बीच अचानक एक चमकदार खंभा या स्तम्भ जैसी चीज प्रकट हो गई. इस खंभे का न तो शीर्ष भाग दिखाई दे रहा था और न ही इसकी जड़ ही नजर आ रही थी. तभी एक आवाज भगवान ब्रह्मा और विष्णु को सुनाई दी जिसने कहा कि दोनों में से जो कोई भी इस खंभे का आदि और अंतिम हिस्सा खोज लेगा, वही बड़ा माना जाएगा.
इसके बाद फिर क्या था, भगवान ब्रह्मा ने तत्काल एक पक्षी का रूप लिया और खंभे के ऊपर वाले हिस्से की ओर उड़ने लगे, ताकि वे इसका शीर्ष भाग खोज सकें. दूसरी ओर भगवान विष्णु ने वराह का रूप लिया और धरती में खुदाई करते हुए इस स्तंभ के नीचे के हिस्से की खोज के लिए निकल पड़े. काफी देर तक यह सिलसिला चलता रहा लेकिन वे सफल नहीं हो सके. आखिरकार दोनों को अपनी हार स्वीकार करनी पड़ी.
इसके बाद इन दोनों देवताओं को अहसास हुआ कि इनसे भी शक्तिशाली कोई और बड़ी शक्ति मौजूद है जो ब्रह्मांड पर राज करती है, और वह भगवान शिव हैं. स्तंभ का ओर-छोर नहीं मिलना दरअसल भगवान शिव के आदि और अंत नहीं होने को दर्शाता है. भगवान शिव का जन्म अपने आप में वाकई एक रहस्य है. ऐसे ही भगवान शिव के विभिन्न अवतार भी इतने हैरान करने वाले हैं, जिसका कोई मुकाबला नहीं है. हिंदू मान्यताओं में शिव लिंग की पूजा का भी विशेष महत्व है. यह पूरे देश में ज्योतिर्लिंगों के रूप में फैला है. मान्यताओं के अनुसार शिव लिंग भगवान शिव के ब्रह्मांड के सृजन, भरण-पोषण और विनाश में भूमिका को दर्शाता है.