हिमाचल की पिछली तमाम सरकारों की तरह ही यह सरकार भी बस हादसों के आगे बेबस नजर आ रही है। जब कोई हादसा हो जाए और जानें चली जाएं तो ही व्यवस्था को जाग आ रही है। हादसा होते ही नई प्लानिंग होती है और बड़ी-बड़ी बातें होती हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के फरमान हल्के में लेने वाली नौकरशाही फिर गहरी नींद में सो रही है। नूरपुर, बंजार जैसे बड़े हादसों से भी सबक नहीं लिया जा रहा। अब राज्य सचिवालय की नाक की सीध में हुए झंझीड़ी बस हादसे ने जयराम सरकार को फिर झिंझोड़ा है। जिन बच्चों ने अभी जीवन की दहलीज पर पांव रखा ही था, उनकी असमय मौत ने सबको हिला दिया है।
मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व की सरकार के सत्ता में आने के चार महीने बाद ही कांगड़ा के नूरपुर में एक बड़ा हादसा हुआ। 9 अप्रैल, 2018 को हुई इस बस दुर्घटना मेें स्कूल बस खाई में गिर गई। इसमें 24 बच्चों समेत 28 की मौत हो गई। इस दिल दहलाने वाली घटना को बीते एक साल ही बीता है कि अब एक अन्य स्कूल बस उस राज्य सचिवालय से थोड़ी दूर नीचे ही दुर्घटनाग्रस्त होती है, जहां मुख्यमंत्री, मंत्री और पूरी सरकार बैठती है। इसमें दो बच्चे और एक ड्राइवर की मौत हो गई।
पांच बच्चों, कंडक्टर समेत छह घायल हो गए। विशेष बात तो यह है कि दस दिन पहले यानी 20 जून को ही कुल्लू के बंजार के बयोठ मोड़ के पास हुए बस हादसे में 46 लोगों की मौत हुई। इनमें 39 लोग घायल हुए।
इस हादसे के बाद भी खूब बडे़-बड़े ऐलान हुए। बसों में ओवरलोडिंग रोकने, सड़कों को दुरुस्त करने, लाइसेंस जारी करने की व्यवस्था सुधारने जैसी बड़ी-बड़ी बातें हुईं, मगर यह सब धरातल पर लागू हुआ भी नहीं था कि राजधानी में ही यह बस दुर्घटना हो गई।
पिछले डेढ़ साल में और भी कई बस हादसे हुए हैं जिसने व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। हादसों का यह सिलसिला पिछली धूमल, वीरभद्र सरकारों में भी जारी था। अब सड़कों, बसों, गाड़ियों की तादाद बढ़ने के साथ ही यह बढ़ गया है। इन्हें रोकने को व्यवस्था फूलप्रूफ नहीं है।