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कामयाब रहा निवेशकों का मेला पर दो साल में कनेक्टिविटी नहीं दिला पाई सरकार..

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जयराम सरकार के दो साल के कार्यकाल में सबसे महत्वपूर्ण घटना ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट मानी जा रही है। पहली बार हुआ निवेशकों का इतना बड़ा मेला बेशक कामयाब रहा हो, मगर अपने शासनकाल के इन सवा सात सौ दिनों में देश-दुनिया के निवेशकों से जमीन पर पैसा खर्चवाने को जयराम सरकार कनेक्टिविटी नहीं दिला पाई है। इस अल्प समय में पूर्व के कई मुख्यमंत्रियों की तरह ही मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर भी सड़कों, रेलमार्गों और एयर कनेक्टिविटी को दुरुस्त करने को कोई जादू की छड़ी नहीं ला पाए।

नतीजतन, आज दो साल के कार्यकाल के बाद भी जयराम सरकार के सामने पहाड़ जैसी चुनौती खड़ी है। इस स्थिति में जयराम सरकार के दो साल के जश्न मनाने के पीछे कुछ सवालों का छूटना स्वाभाविक भी है। हिमाचल पर वर्तमान में 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा कर्ज चढ़ा हुआ है। कर्ज लेकर हिमाचल को घी पिलाने की परंपरा पूर्व के मुख्यमंत्रियों की तरह बंद करने को सीएम जयराम ठाकुर कोशिश जरूर कर रहे हैं, पर लक्ष्य अभी बहुत दूर है। हालांकि, 27 दिसंबर, 2017 को सत्ता संभाल पहली दफा सीएम बनने के बाद ही जयराम ठाकुर ने हिमाचल को ऋणमुक्त अर्थव्यवस्था बनाकर इसे अपने पैरों पर खड़ा करने का एलान किया था। दो साल में जयराम आला अधिकारियों कोे इसका समाधान तलाशने को झकझोरते रहे।

समाधान यह निकाला गया कि कृषि, पशुपालन जैसे प्राइमरी सेक्टर से हिमाचल को एकदम पटरी पर नहीं लाया सकता है। बेशक, 90 फीसदी से ज्यादा हिमाचली कृषक हों। वजह यह बताई गई कि सकल घरेलू उत्पाद में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान लगातार गिरा है। ऐसे में हाइड्रो, उद्योगों, पर्यटन जैसे दूसरे क्षेत्रों पर ध्यान देने की बातें हुईं। इसके लिए मोदी के गुजरात मॉडल को स्टडी किया गया। सरकार ने देश-विदेश में निवेशकों को आकर्षित करने के रोड शो किए। नतीजतन, पहली बार हिमाचल के इतिहास में एक बड़ी घटना सात और आठ नवंबर 2019 को धर्मशाला में ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के रूप में हुई।

अंबानी, महिंद्रा, टाटा जैसे देश के बड़े निवेशकों की गैर हाजिरी में ही इस मीट और इसके बाद अब तक हिमाचल में 97 हजार करोड़ रुपये के निवेश के एमओयू साइन किए गए हैं। यूएई सरकार को भी इसके लिए साझीदार बनाया गया। इतना बड़ा निवेश अगर हो जाता है तो यह हिमाचल का सारा कर्ज उतार सकता है। सरकारी नौकरियों पर आश्रित लाखों हिमाचलियों को रोजगार के अवसर दे सकता है। सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों पर ही हिमाचल का आधा बजट हर साल खर्च हो जाता है, जिसका प्रबंध कर्ज लेकर किया जाता है।

हिमाचल का कुल सालाना बजट 40 से 45 हजार करोड़ रहता है। इसमें करीब 20 हजार करोड़ सरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों पर ही खर्च हो जाते हैं। निवेशकों से हिमाचल में 97 हजार करोड़ खर्चवाने की मुहिम चला चुके सीएम जयराम ठाकुर खुद मान चुके हैं कि यह एक लक्ष्य है। इसका मतलब यह नहीं है कि इतना पैसा हिमाचल को आ ही गया। निवेश को धरातल पर लाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी होगी।

इसी मशक्कत का पीएम नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट के बाद दूसरा पड़ाव उनकी सरकार के कार्यकाल के दो साल पूरे होने के उपलक्ष्य पर पीटरहॉफ में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में होने जा रही ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी है, जिसमें करीब 10 से 15 हजार करोड़ रुपये के निवेश को धरातल पर उतारने का एलान होगा। हालांकि, बड़ा सच यह है कि हिमाचल में सड़कों, रेल मार्ग और वायु मार्ग की कमजोर कनेक्टिविटी की वजह से हिमाचल में बड़ा निवेशक क्यों पूरा पैसा लगाएगा। वह अपने माल की ट्रांसपोर्टेशन और समय की लागत को कैसे घटाएगा। लागत बढ़ने पर उसे क्या मुनाफा होगा, जबकि कच्चा माल भी मैदानों से आना है। चंडीगढ़ से दुबई जाने में पर्यटक को चार घंटे लगते हैं और मनाली पहुंचने में आठ घंटे, वे भी सड़कों पर हिचकोले खाते हुए। ऐसे में खूब पैसा खर्चने वाला अमीर पर्यटक भी हिमाचल में क्यों और कैसे आएगा।

हिमाचल को खुली-चौड़ी सड़कों की कनेक्टिविटी दिलाने को 69 एनएच बनाए जाने की परियोजनाएं अधर में फंसी पड़ी हैं। इनमें 62 एनएच की ही फिजिबिलिटी बन पा रही है। 62 में से भी 56 राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने का अभी शुरुआती काम ही चला है। इसमें भी फॉरेस्ट क्लीयरेंस, भूमि अधिग्रहण जैसी कई औपचारिकताओं को पूरा करने में सालों लग जाएंगे।

रेलवे कनेक्टिविटी की बात करें तो इस दिशा में भी हिमाचल आजादी के बाद थोड़ा सा सफर ही आगे बढ़ा पाया है। प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक क्षेत्रों को जोड़ने के लिए बनाई जा रही चंडीगढ़-बद्दी रेललाइन का काम सर्वेक्षण से आगे ही नहीं बढ़ पाया है। भानुपल्ली-बिलासपुर रेल लाइन को जल्दी पूरा करने की बातें कई दशकों से सुनी जा रही हैं।

पठानकोट-जोगेंद्रनगर रेललाइन हो या फिर ऊना-हमीरपुर को रेल से जोड़ने की ही योजना हो। इसमें अभी बहुत वक्त लगेगा। एक सदी पुराना शिमला-कालका रेलमार्ग एक इंच भी आगे नहीं बढ़ाया जा सका है। लेह के लिए जाने वाले सामरिक महत्व के रेलमार्ग बनाने का प्रस्ताव भी अभी नया है।

हिमाचल प्रदेश को हवाई कनेक्टिविटी से जोड़ने की बहुत बातें होती रही हैं। चप्पलवाले को भी हवाई जहाज में बैठाने की देशव्यापी उड़ान योजना का लोकार्पण प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शिमला से ही किया था, मगर प्रदेश की राजधानी के लिए न तो बड़े हवाई जहाज आ पा रहे हैं और न ही नियमित उड़ानें भरी जा पा रही हैं।
हर जिले में हेलीपोर्ट बनाने की योजना भी धीमी गति में है। सरकार की हेलीटैैक्सी योजना भी शुरू में ही दम तोड़ गई। प्रदेश के कई क्षेत्रों से चंडीगढ़ के लिए हेलीटैक्सी चलाने का प्रयास भी अधर मेें फंस गया।

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