Home शख़्सियत दिनेश कुमार शुक्ल

दिनेश कुमार शुक्ल

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दिनेश कुमार शुक्ल जन्म- 8 अप्रैल, 1950, कानपुर, उत्तर प्रदेश हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि हैं। वे हिन्दी के समकालीन माने हुए कवियों में गिने जाते हैं। इनकी कविताएँ और आलेख लगभग सभी प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं और पत्रों में प्रकाशित हुए हैं। दिनेश कुमार शुक्ल की अद्भुत शैली ने समकालीन कविता के साहित्यिक मानकों से समझौता किए बगैर कविता को आम लोगों के क़रीब लाने का सार्थक काम किया है। पारंपरिक साहित्यिक व लोकरूपों के प्रयोग ने दिनेश कुमार शुक्ल की कविताओं को एक नई धार दी है।

जन्म तथा शिक्षा
दिनेश कुमार शुक्ल का जन्म 18 अप्रैल, 1950 को उत्तर प्रदेश के नर्वल गाँव, कानपुर में हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा के अंतर्गत एम.एस.सी. और डी.फ़िल. (भौतिक) की डिग्री इलाहाबाद विश्वविद्यालय से प्राप्त की। दिनेश कुमार शुक्ल शब्द और मनुष्य की समेकित संस्कृति के संश्लिष्ट कवि हैं। जीवन के द्वन्द्व से उत्पन्न आलाप उनकी कविताओं में एक स्वर-समारोह की तरह प्रकट होता है। विभिन्न संवेदनाओं से संसिक्त दिनेश कुमार शुक्ल की रचनाएँ अति परिचित समय का कोई अ-देखा चेहरा उद्घाटित करती हैं।

रचनाएँ
अपनी बेहतरीन रचनाओं से प्रसिद्धि प्राप्त करने वाले दिनेश कुमार शुक्ल की कुछ रचनाएँ इस प्रकार हैं-

समय चक्र – 1997
कभी तो खुलें कपाट – 1999
नया अनहद – 2001
कथा कहो कविता – 2005
ललमुनियाँ की दुनिया – 2008
आखर-अरथ – 2009
समुद्र में नदी
काव्यनुवाद – पाब्लोनेरुदा की कविताएँ (1989) तथा कुछ आलोचनात्मक गद्य, समीक्षाएँ, टिप्पणियाँ और निबंध आदि।

कविता संग्रह
दिनेश कुमार शुक्ल का पहला कविता संग्रह ‘समयचक्र’ 1997 में आया था। इसके बाद उनके छह अन्य काव्य-संग्रह प्रकाशित हुए। उनका ताजा काव्य-संग्रह ‘समुद्र में नदी’ हाल के समय में ‘भारतीय ज्ञानपीठ’ से आया था। उन्होंने पाब्लो नेरूदा की कविताओं का अनुवाद भी किया है, जो एक काव्य पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुका है।

कविता-पाठ का आयोजन
‘साहित्य अकादमी’ के ‘कवि-संधि’ कार्यक्रम में 8 दिसम्बर, 2011 को हिन्दी कवि दिनेश कुमार शुक्ल का कविता-पाठ आयोजित किया गया। इस आयोजन में शुक्लजी ने अपने कानपुर प्रवास के दौरान लिखी गई अपनी दो छोटी कविताओं ‘भाई कवि’ और ‘खोलो आँख’ से शुरू कर पन्द्रह अन्य कविताएँ प्रस्तुत कीं। सस्वर पढ़ी गई इन कविताओं में कुछ लम्बी कविताएँ, जैसे- ‘यह रंग है क्या?’ तथा ‘चैत की चैपाई’ भी शामिल थी।[1] ‘यह रंग है क्या?’ शीर्षक कविता की निम्न पंक्तियाँ श्रोताओं द्वारा बेहद पसंद की गई थीं-

बहुत से रंग हैं उधेड़बुन के उन्हीं में दुनिया उलझ रही है
कहीं जो साबुन का बुलबुला है उसी को सूरज समझ रही है।
समय के गिरगिट ने रंग बदला रंगों के रंग भी बदल गए हैं।
गुफा से आकर पुराने अजगर तमाम इतिहास निगल गये हैं।

आयोजन में दिनेश कुमार शुक्ल की ‘नया नियम’ शीर्षक की निम्न पंक्तियाँ भी बहुत सराही गईं-
अब कहाँ सम्‍भव
बिना आवाज़ का संगीत
बिना भाषा की कविता
बिना हवा का तूफ़ान
बिना बीज के फल
बिना युद्ध का समय
नहीं,
उस तरह सम्‍भव नहीं हो पाता
अब संसार।

उनके द्वारा सुनाई गई अन्य कविताओं के शीर्षक थे- ‘काया की माया रतनज्योति’, ‘चतुर्मास’, ‘सुबह से पहले’, ‘पान-फूल’, ‘षटपद’, ‘पुनुरोदय’, ‘चैत की चैपाई’, ‘भूल’, ‘सागर का सभागार’, ‘आएँगे हम भी अगर आ पाये’, ‘विलोमानुपात’, ‘पूस के खेत की रात’, ‘जगह जानी-पहचानी’।

पुरस्कार व सम्मान
हिन्दी के कवि और आलोचक दिनेश कुमार शुक्ल को ‘केदार सम्मान’ और ‘सीता स्मृति सम्मान’ देकर सम्मानित किया जा चुका है। उन्हें पहला ‘सीता पुरस्कार’ उनके काव्य-संग्रह ‘लालमुनिया की दुनिया’ के लिए प्रदान किया गया। इस पुरस्कार के स्वरूप उन्हें एक लाख रुपये की नकद धनराशि, प्रशस्ति पत्र, प्रतीक चिह्न और शॉल से सम्मानित किया गया। वर्ष 2009-2010 के लिए पहला ‘सीता स्मृति सम्मान’ ‘भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद’ (आईसीसीआर) द्वारा ‘नेहरू मेमोरियल म्यूजियम व लाइब्रेरी ऑडिटोरियम’, नई दिल्ली में 24 फ़रवरी, 2011 को प्रदान किया गया।[2]

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