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जया बच्चन

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जया बच्चन  जन्म- 9 अप्रैल, 1950, जबलपुर, मध्य प्रदेश एक प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेत्री और राज्यसभा की सदस्य हैं। जया भारतीय सिनेमा के महानायक अमिताभ बच्चन की पत्नी और अभिनेता अभिषेक बच्चन की माँ है। अभिनेत्री के रूप में जया की भी अपनी विशिष्ट उपलब्धियाँ रही हैं और वे फ़िल्म क्षेत्र की आदरणीय अभिनेत्रियों में गिनी जाती हैं। आज के अनेक युवा कलाकारों के लिए वे मातृवत स्नेह का झरना हैं। जया भादुड़ी ने ऐसे समय में फ़िल्मों में प्रवेश किया था, जब परदे पर शर्मिला टैगोर, मुमताज़ और हेमा मालिनी की चमक-दमक फैली हुई थी। सत्तर के दशक में सीधी-सादी, मासूम-सी लड़की का ग्लैमर की दुनिया में आना और सफल होना, एक तरह से नामुमकिन जैसा था लेकिन जया की सादगी दर्शकों को एकदम से लुभा गई। उन्हें जया के मासूम चेहरे में एक भारतीय लड़की के दर्शन हुए। दर्शकों को लगा जैसे वे पड़ोस में रहने वाली लड़की हों।[1]

जीवन परिचय
जन्म और परिवार
जया बच्चन का जन्म का नाम ‘जया भादुड़ी’ है। वे पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी की तीन पुत्रियों में सबसे बड़ी हैं। तरुण कुमार का वास्तविक नाम सुधांशु भूषण था। 1936 में उनके पिता देवीभूषण दिल्ली से स्थानांतरित होकर नागपुर पहुँचे थे। सुधांशु ने त्रिपुरी कांग्रेस में स्वयंसेवक की भूमिका निभाई थी। उन्होंने 1944 में पटना की इंदिरा गोस्वामी से विवाह किया। जया का जन्म 9 अप्रैल 1950 को हुआ। जया की दो छोटी बहनों के नाम नीता और रीता हैं।[2]

बचपन
जया बचपन से ही जिद्दी स्वभाव की थीं। उन्हें जो चाहिए, वह हासिल कर छोड़ती थीं। वे भोपाल के ‘सेंट जोसेफ कॉन्वेंट’ में पढ़ती थीं। खेलकूद में भी वे शिरकत करती थीं और 1966 में उन्हें प्रधानमंत्री के हाथों एन.सी.सी. की बेस्ट कैडेट होने का तमगा मिला था। उन्होंने छः साल तक भरतनाट्यम का प्रशिक्षण भी लिया था। वे दिलीप कुमार की प्रशंसक हैं।

शिक्षा
हायर सेकंडरी पास करने के बाद जया ने पुणे के ‘फ़िल्म इंस्टीट्यूट’ में प्रवेश लिया था, लेकिन इससे पहले ही वे सत्यजीत राय की फ़िल्म ‘महानगर’ में काम कर चुकी थीं। फ़िल्म निर्माता-निर्देशक तपन सिन्हा, तरुण कुमार के अच्छे दोस्तों में थे। उनकी फ़िल्म ‘क्षुधित पाषाण’ की जब भोपाल में शूटिंग हुई थी, तब सारी व्यवस्था तरुण कुमार ने की थी। सिन्हा, तरुण कुमार को भाग्यवान (लकी) आदमी मानते थे और अपनी शूटिंग के समय अक्सर उन्हें अपने पास बुलाया करते थे। इसीलिए ‘निर्जन सैकते’ की आउटडोर शूटिंग के समय उन्होंने अपने मित्र को पुरी बुलाया था। यह 1962 का साल था। पिताजी के साथ जया भी पुरी गई थीं। वे होटल ‘बे-व्यू’ में ठहरे थे, जहाँ शर्मिला टैगोर और रवि घोष से भी उनकी मुलाकात हुई थी।[2]

अभिनय का प्रारम्भ
15 साल की उम्र में जया भादुड़ी को सबसे पहले बंगला के महान् फ़िल्मकार सत्यजित रे ने अपनी फ़िल्म ‘महानगर’ में लिया था। इसके पहले वे ‘भारतीय फ़िल्म एंड टेलीविजन फ़िल्म इंस्टीट्यूट’ की डिप्लोमा फ़िल्म ‘सुमन’ में कैमरे का सामना कर चुकी थीं। ‘सुमन’ फ़िल्म के डायरेक्टर उनके सहपाठी मदन बावरिया थे। जया बंबइया निर्माता-निर्देशकों को भा गईं। ऋषिकेश मुखर्जी ने ‘सुमन’ फ़िल्म में जया को देखा, तो अपनी फ़िल्म ‘गुड्डी’ में स्कूल-गर्ल के रूप में चुन लिया। जया इंस्टीट्यूट में पढ़ रही थीं कि बासु चटर्जी अपनी फ़िल्म में काम करने के लिए उनसे बात करने आए थे। चटर्जी से जया ने कहा था कि कोर्स पूरा करने से पहले कोई भी छात्र फ़िल्म में काम नहीं कर सकता, ऐसा नियम है। तब चटर्जी ने जया से कहा था कि उनके जैसी कलाकार के लिए इंस्टीट्यूट की पढ़ाई का कोई महत्व नहीं है। छोड़ दो कोर्स। लेकिन जया ने ऐसा नहीं किया था। बासु चटर्जी ने भी उनकी प्रतीक्षा नहीं की थी। जया बच्चन को ‘भारतीय फ़िल्म एंड टेलीविजन फ़िल्म इंस्टीट्यूट’ से गोल्ड मेडल मिला

पहली फ़िल्म
जगत मुरारी जब फ़िल्म इंस्टीट्यूट के प्रधानाचार्य थे, तब ऋषिकेश मुखर्जी ने उनसे कहा था कि ‘गुड्डी’ फ़िल्म के लिए एक अच्छी लड़की चाहिए। जगत् मुरारी ने कहा था- ‘जया है ना, जया भादुड़ी।’ ऋषिदा को अचानक उनका स्मरण हो आया और उन्होंने कहा- ‘जया आदर्श गुड्डी बनेगी। वह जैसे ही पास हो जाए, मैं ‘गुड्डी’ का काम शुरू कर दूँगा।’ 16 अगस्त 1970 को जया ने मुंबई की गाड़ी पकड़ी और 18 अगस्त को मोहन स्टूडियो में ‘गुड्डी’ की शूटिंग शुरू हो गई।[2] ‘गुड्डी’ फ़िल्म में स्कूल गर्ल फ़िल्म स्टार धर्मेंद्र की दीवानी है। गुड्डी के सेट पर ही अमिताभ बच्चन, जलाल आगा और अनवर अली से जया की मुलाकात हुई थी। ‘गुड्डी’ के सेट पर जया को हमेशा यह लगता रहता था कि यह तिकड़ी कोड-लेंग्वेज में मेरे बारे में ही बातें करती रहती है। मिथुन चक्रवर्ती, अमित और जया की जोड़ी को ‘मेड फॉर इच अदर’ (एक-दूजे के लिए) कहते हैं।[2] ‘गुड्डी’ फ़िल्म सफल रही और जया को फौरन राजश्री प्रोडक्शन की फ़िल्म ‘उपहार’ में नायिका का रोल मिल गया। दर्शकों को जया भा गईं। उनके लिए वे नई आदर्श कन्या बन गईं। अपनी सादगी भरी पोषाक और सीधे-सरल रोल के कारण दर्शक जया को पसंद करने लगे।

सशक्त अभिनेत्री
जया ने भी तय कर लिया था कि वे हिन्दी फ़िल्म की हिरोइन की इमेज को बदल देंगी। अब तक फ़िल्मों में हिरोइन को हीरो के आसपास नाचते-गाते, रोमांस करते ही दिखाया जाता रहा था। हिरोइन भी बुद्धिमान हो सकती है। वह अपने फैसले खुद कर सकती है। ज़रूरत पड़ने पर माता-पिता या ससुराल वालों से तर्क-वितर्क कर सकती है, ऐसा कभी दिखाया नहीं गया था। वह महज शो-पीस या फिर घर की चाहरदीवारी में ‘मैं चुप रहूँगी’ अंदाज में आँसू बहाने वाली अबला जैसी दिखाई जाती थी। जया ने अत्यंत कुशलता के साथ अपनी इमेज बनाई और ‘पिया का घर’, ‘अनामिका’, ‘परिचय’, ‘कोरा काग़ज’, ‘अभिमान’, ‘मिली’, ‘कोशिश’ जैसी कई उम्दा फ़िल्में कीं। जया की जब सशक्त अभिनेत्री की इमेज बन गई तो अस्सी के दशक के नामी नायक उनके साथ काम करने से घबराने लगे।

अमिताभ और जया
जया और अमिताभ का परिचय ऋषिकेश मुखर्जी ने अपनी फ़िल्म ‘गुड्डी’ के सेट पर कराया था। अभिमान फ़िल्म के बाद अमिताभ और जया ने ज़िंदगी भर साथ चलने का फैसला किया था और शोले फ़िल्म साइन करने के बाद दोनों ने शादी कर ली। अमिताभ और जया 3 जून 1973 को बंगाली रीति-रिवाज से शादी के बंधन में बंध गए। जया और अमिताभ पहली बार पुणे के फ़िल्म इंस्टीट्यूट में मिले थे। जया कहती हैं कि मैंने पहली बार अमित जी को इंस्टीट्यूट में देखा और पसंद करने लगी। मेरे दोस्तों ने कहा कि वो एक स्टिक की तरह लगते हैं। वो काफ़ी पतले थे और उनकी आंखें काफ़ी बड़ी-बड़ी थीं। मुझे याद है कि इस बात पर मैं अपने दोस्तों से काफ़ी लड़ी थी और कहा था कि वो काफ़ी अलग हैं। शायद ये पहली नजर का प्यार था। उसके बाद ये मुलाकात, कई और मुलाकातों का सबब बनी लेकिन दोनों कैसे क़रीब आए, इसे दोनों ने जमाने से छुपाए रखा। चुपके-चुपके, गुड्डी, बावर्ची, सिलसिला, अभिमान, मिली, कभी खुशी कभी गम में दोनों की ऑन स्क्रीन कैमिस्ट्री बेमिसाल रही है।[3] जया भादुड़ी ने अमिताभ के साथ आठ फ़िल्में की जो सभी काफ़ी सफल रहीं। अमिताभ बच्चन से 37 सालों से उनका साथ जुड़ा है। अभिमान फ़िल्म के बाद अमिताभ और जया ने ज़िंदगी भर साथ चलने का फैसला किया था और शोले फ़िल्म साइन करने के बाद दोनों ने शादी कर ली। अमिताभ-जया का 37 साल पुराना ये रिश्ता आज के नौजवानों के लिए मिसाल है।[4] 1972 से 1981 तक जया ने अमिताभ बच्चन के साथ कुल आठ फ़िल्में की हैं। ये हैं-

बंसी-बिरजू
एक नजर
जंजीर
अभिमान
चुपके-चुपके
मिली
शोले
सिलसिला।
इसके बाद वे ‘कभी खुशी-कभी गम’ में भी वे साथ-साथ आए थे।

कैरियर

श्रीमती अमिताभ बच्चन बनने के बाद अपनी पृथक् पहचान बनाए रखना लगभग असंभव था, लेकिन जया ने इसे संभव कर दिखाया। इसे उनके व्यक्तित्व की विशिष्टता कहा जा सकता है। अपनी पहली हिन्दी फ़िल्म ‘गुड्डी’ में उन्होंने अभिनेता धर्मेन्द्र की दीवानी-लड़की की भूमिका की थी, जबकि दूसरी फ़िल्म राजश्री की ‘उपहार’ में ऐसी अल्हड़ लड़की का रोल किया था, जो प्रेम और शादी का अर्थ नहीं समझती है। इन दो फ़िल्मों के बाद ही उन्हें संजीदा अभिनेत्री के रूप में मान्यता मिल गई। महिला दर्शकों ने जया को सादगी की साक्षात मूर्ति के रूप में ज़्यादा सराहा, लेकिन ग्लैमरस भूमिकाओं में (दिल दीवाना) नकार दिया। अपने अपेक्षाकृत छोटे-से कैरियर में जया ने ‘गुड्डी’, ‘उपहार’ ‘जवानी दीवानी’, ‘अनामिका’, ‘कोरा काग़ज़’, ‘कोशिश’, ‘पिया का घर’, ‘बावर्ची’, ‘गाय और गौरी’, ‘मन का आँगन’, ‘नौकर’, ‘नया दिन-नई रात’, ‘परिचय’, ‘फागुन’, ‘समाधि’, ‘सिलसिला’, ‘शोर’, ‘शोले’, ‘जंजीर’, ‘फिज़ा’, ‘कभी खुशी कभी ग़म’ जैसी फ़िल्मों में काम किया।[2]

फ़िल्म सूची

जया बच्चन का फ़िल्मी सफ़र
वर्ष फ़िल्म का नाम पात्र का नाम विशेष
1963 महानगर बानी बंगाली फ़िल्म
1971 गुड्डी कुसुम / गुड्डी नामांकित फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
1971 उपहार नामांकित फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
1971 धन्नी मेयी मोनाशा बंगाली फ़िल्म
1972 जवानी दिवानी नीता ठाकुर
1972 बावर्ची कृष्णा शर्मा
1972 परिचय रमा
1972 समाधि
1972 बंसी बिरजू बंसी
1972 पिया का घर मालती
1972 अन्नदाता आरती
1972 एक नज़र शबनम
1972 कोशिश आरती माथुर नामांकित फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
1972 शोर रात की रानी / रानी
1972 जय जवान जय मकान
1973 गाय और गोरी नीता ठाकुर
1973 फ़ागुन कृष्णा शर्मा
1973 जंजीर माला
1973 अभिमान उमा फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
1974 आहट
1974 दिल दीवाना
1974 कोरा कागज़ अर्चना गुप्ता फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
1974 नया दिन नई रात
1973 दूसरी सीता
1975 मिली मिली खन्ना नामांकित फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
1975 चुपके चुपके वसुधा
1975 शोले राधा
1977 अभी तो जी लें जया
1978 एक बाप छ: बेटे
1979 नौकर गीता फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री पुरस्कार
1981 सिलसिला शोभा मल्होत्रा नामांकित फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री
1998 हज़ार चौरासी की माँ सुजाता चटर्जी
2000 फ़िज़ा निशात्बी फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री पुरस्कार
2001 कभी खुशी कभी ग़म नन्दिनी रायचन्द फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री पुरस्कार
2002 कोई मेरे दिल से पूछे मानसी देवी
2003 कल हो ना हो जेनिफ़र कपूर फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ सह अभिनेत्री पुरस्कार
2007 लागा चुनरी में दाग़ साबित्री सहाय
2008 द्रोणा रानी जयंती

 

प्रसिद्धि के शिखर पर
वर्ष 1972 में जया भादुड़ी को ऋषिकेश मुखर्जी की ही फ़िल्म ‘कोशिश’ में काम करने का अवसर मिला, जो उनके सिने करियर के लिए मील का पत्थर साबित हुई। इस फ़िल्म की सफलता के बाद वह शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुंचीं। वह इस फ़िल्म में दमदार अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के फ़िल्म फेयर पुरस्कार से भी नामांकित भी की गई। फ़िल्म “कोशिश” में जया भादुड़ी ने एक गूंगी लड़की की भूमिका निभाई जो किसी भी अभिनेत्री के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी। बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखो और चेहरे के भाव से दर्शको को सब कुछ बता देना। यह उनकी अभिनय प्रतिभा का ऎसा उदाहरण था, जिसे शायद ही कोई अभिनेत्री दोहरा पाए।

ऋषिकेश बने पसंदीदा निर्देशक
‘कोशिश’ की सफलता के बाद ऋषिकेश मुखर्जी जया भादुड़ी के पसंदीदा निर्देशक बन गए। बाद में जया भादुड़ी ने उन के निर्देशन में ‘बावर्ची’, ‘अभिमान’, ‘चुपके चुपके’ और ‘मिली’ जैसी कई सफल फ़िल्मों में अपने अभिनय के जौहर दिखाये।[6]
पारिवारिक दायित्व
जया ने अपने दौर की नायिकाओं से अपने को अलग किया। शादी के बाद घरेलू ज़िन्दगी जीने और अमिताभ के ‘सुपरस्टार’ बन जाने की व्यस्तता के चलते उन्होंने फ़िल्मों में काम करना कम कर दिया। पुत्र अभिषेक का जन्म, बेटी का जन्म, दोनों की परवरिश, अमिताभ की बीमारी के समय अपने दायित्वों को पूरा करने में वह काफ़ी समय फ़िल्मों से दूर रहीं। उन्होंने बच्चों के साथ पति के कैरियर को भी संभाला। एक जुझारू स्त्री होने के नाते उन्होंने कई बार अग्नि परीक्षाएँ दीं और सबमें सफल रहीं। इसी बीच ‘माँ रिटायर होती है’ जैसे नाटक में काम कर उन्होंने देश – विदेश में लोकप्रियता के परचम फहराए।

सम्मान और पुरस्कार
जया बच्चन को उनके बेमिसाल अभिनय के लिए तीन बार ‘फ़िल्मफेयर बेस्ट एक्ट्रेस’ का अवार्ड और तीन ही बार ‘बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस’ का पुरस्कार मिला है। 2007 में जया बच्चन को ‘लाइफ टाइम अवार्ड’ से भी नवाजा गया था। 1992 में उन्हें भारत सरकार द्वारा पद्म श्री भी मिल चुका है।

बच्चन परिवार
आज बच्चन परिवार दुनिया का सबसे अधिक ग्लैमरस, प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित परिवार है। एक ही परिवार में चार मशहूर सैलिब्रिटी होने की वजह से बच्चन परिवार अपने आप में एक ब्रांड बन चुका है। सुपरस्टार्स से भरे इस परिवार में जया का अपना एक अलग ही स्थान है।

 

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