Home राष्ट्रीय लद्दाख में फिर खुराफात कर सकता है चीन…..

लद्दाख में फिर खुराफात कर सकता है चीन…..

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अभी लद्दाख सेक्टर में भीषण सर्दी की वजह से भले ही चीनी सैनिक ठंडे पड़ गए हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए प्लानिंग करने वालों को आशंका है कि मार्च अंत में बर्फ पिघलने की शुरुआत के साथ ही चीन टकराव वाले स्थानों पर सैनिक गतिविधियां बढ़ा सकता है। कई दौर की बातचीत के बाद भी टकराव वाले स्थानों से पीएलए सैनिक की वापसी शुरू नहीं हुई है और इस बीच चीन ने दौलत बेग ओल्डी सेक्टर में अडवांस लैंडिंग ग्राउंड्स, सैनिकों के लिए घर और होटन एयरबेस से काराकोरम पास तक जल्दी पहुंचने वाले रास्ते का निर्माण कर लिया है। एक वरिष्ठ कमांडर ने कहा, ”डेपसांग उभार के उत्तर में सैन्य दबाव हो सकता है।

इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने बताया कि नौवें दौर की सैन्य वार्ता के लिए जल्द तारीखें तय की जा सकती हैं और तनातनी को कम करने के लिए अच्छी प्रगति की उम्मीद है। हालांकि, सरकार में दूसरा पक्ष इसके ठीक उलट है और जो मानता है कि चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी की 100वीं वर्षगांठ में शी जिनपिंग के भाषण से पहले चीनी सैनिक पीछे हटने के मूड में नहीं हैं। एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ”यह दुर्भाग्यपूर्ण रिकॉर्ड है।”

समय जितना भी लगे भारतीय सेना पूर्वी लद्दाख में जमे रहने के लिए तैयार बैठी है, जबकि चीन का रुख इस बात से भी प्रभावित हो सकता है कि अमेरिका में राष्ट्रपति पद की शपथ लेने जा रहे जो बाइडेन का रवैया बीजिंग के प्रति कैसा होता है। हालांकि कई लोगों का मानना ​​है कि आने वाला अमेरिकी प्रशासन चीन को अन्य महाशक्ति के रूप में अपनी मान्यता देकर संतुलन बना सकता है, यह नया G-2 फैक्टर रूस जैसे पूर्व महाशक्तियों को नुकसान पहुंचाएगा।

वहीं, भारत मानता है कि यह बहु ध्रुवीय दुनिया है और नई दिल्ली चीन से अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए वॉशिंगटन पर निर्भर नहीं है। इसलिए, आत्मनिर्भर भारत के तहत सार्वजनिक और निजी क्षेत्र की भागीदारी से स्वदेशी तकनीक वाले ड्रोन, लड़ाकू विमान और हथियारों का निर्माण किया जा रहा है। इसी के तहत डीआरडीओ और एचएएल की ओर से तेजस मार्क I निर्माण किया जा रहा है।

राष्ट्रीय सुरक्षा विमर्श से परिचित वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, भारत को उम्मीद है कि आने वाला बाइडेन प्रशासन चीन, दक्षिण चीन सागर, ताइवान या हिंद-प्रशांत पर अपनी प्रतिबद्धताओं के साथ खड़ा रहेगा, लेकिन नई दिल्ली पीएलए से निपटने के लिए अमेरिका पर निर्भर नहीं है। तथ्य यह है कि अमेरिका ने वास्तव में सूचनाओं के आदान-प्रदान से हिंद प्रशांत क्षेत्र में भारत की जागरूकता बढ़ाई है, लेकिन यही लद्दाख के बारे में नहीं कहा जा सकता है। यह दृष्टिकोण चीन की धारणा के विपरीत है जो भारत को अमेरिका के चश्मे से देखता है।

3,488 किलोमीटर लंबे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर पीएलए बॉर्डर इन्फ्रास्ट्रक्चर बढ़ा रहा है, भारत इस बात की संभावना को लेकर चल रहा है कि ड्रैगन अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम-भूटान-भारत तिराहे पर भी मोर्चा खोल सकता है। हालांकि, 15 जून को गलवान घाटी में हिंसक झड़प के दौरान चीन को जिस तरह बड़ा नुकसान उठाना पड़ा, वह भारतीय सेना के साथ हाथापाई की गलती नहीं करेगा और हथियारों से लड़ना चाहेगा।

हालांकि, इस तरह के टकराव का नुकसान है और चीन इससे अवगत है। चीनी मीडिया अक्सर यह धमकी देती है कि चीन भारतीय सेना को सबक सिखाना चाहता है, लेकिन बीजिंग इस बात से परिचित है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुआई वाला भारतीय राजनीतिक नेतृत्व में पटलवार की क्षमता है जैसा कि इसने पैंगोंग झील के दक्षिणी किनारे पर 29-30 अगस्त 2020 को किया। एक ऐसे देश के लिए जो खुद को अब अमेरिका के कब्जे वाले महाशक्ति स्लॉट के दावेदार के रूप में देखता है, भारत के सामने किसी भी सैन्य नुकसान से उसका दावा कमजोर होगा।

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