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पीपल के मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु और अग्रभाग में शिव का होता है वास….

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भारतीय संस्कृति में कुछ वृक्षों को दिव्य वृक्षों की श्रेणी में रखा गया है। पीपल उनमें से एक है। पीपल का पेड़ औषधि विज्ञान की दृष्टि से जितना हितकारी है, धार्मिक व आध्यात्मिक दृष्टिकोण से उससे भी अधिक महत्वपूर्ण है। भागवत गीता में भगवान कहते हैं, ‘वृक्षों में सर्वोत्तम मैं पीपल हूं।’ ऋग्वेद में, इसे देव वृक्ष कहा गया है। जो संसार को सब कुछ देता है। दिन-रात प्राणवायु देने वाले पीपल की सकारात्मक ऊर्जा के सहारे, महात्मा बुद्ध से लेकर अनेक मुनि-ऋषियों ने इसके नीचे ज्ञानार्जन किया है।

औषधीय गुणों के कारण, पीपल के वृक्ष को ‘कल्पवृक्ष’ भी कहा गया है। यजुर्वेद में, पीपल को हर यज्ञ की जरूरत बताया है। अथर्ववेद, इसे देवताओं का निवास स्थान बताता है। स्कंदपुराण में वर्णित है, -पीपल की जड़ में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तों में हरि और फलों में सभी देवताओं का वास है।

पीपल का पेड़ भगवान के विश्व रूप का ही आध्यात्मिक दर्शन करता है। क्योंकि शास्त्रों में, ब्रह्मांड को उल्टा, वृक्ष सदृश बताया है। इस सृष्टि रूपी उल्टे पेड़ के ऊर्ध्व में इसकी विज, दिव्य ज्योतिबिंदु स्वरूप शिव परमात्मा है। श्रीमद्भागवत में उल्लेख मिलता है, -द्वापर युग में परमधाम जाने से पूर्व, तपस्वी के रूप में श्रीकृष्ण, दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर परमात्मा के ध्यान में लीन हुए। शास्त्रों में कहा गया है कि कल्पान्त के प्रलयकाल में, जब सृष्टि जलमय हुई, तब पीपल के पत्ते पर अंगूठा चूसते हुए नवजात श्रीकृष्ण का आविर्भाव हुआ। इसके आध्यात्मिक अर्थ हैं कि पीपल के पत्ते की आकृति गर्भाशय जैसी है। उस पर लेटे हुए बालकृष्ण का आगमन, सतयुगी सृष्टि के शुभारंभ का सूचक है।

पीपल की श्रेष्ठता के बारे में ग्रंथ कहते हैं- ‘मूलत: ब्रह्म रूपाय, मध्यतो विष्णु रुपिण:, अग्रत: शिव रुपाय अश्वत्थाय नमो नम:।’ अर्थात, इसके मूल में ब्रह्मा, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास है। शास्त्रों के मुताबिक, यदि कोई व्यक्ति पीपल के नीचे शिवलिंग स्थापित कर पूजा करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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