महाभारत में पांडवों का वनवास चल रहा था। एक दिन युधिष्ठिर एकांत में बैठे थे और प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले रहे थे। इस दौरान उन्होंने आंखें बंद की और ध्यान में बैठ गए। तभी वहां द्रौपदी भी पहुंच गईं। जब युधिष्ठिर का ध्यान पूरा हुआ तो वे बहुत प्रसन्न दिख रहे थे।
द्रौपदी ने उनसे पूछा, ‘आप भगवान पर इतना भरोसा करते हैं, पूजा-पाठ, तप-जप और ध्यान करते हैं। निश्चित ही आंखें बंद करके आप भगवान से जुड़े होंगे।’
युधिष्ठिर ने कहा, ‘हां।’
द्रौपदी बोलीं, ‘तो फिर आप भगवान से पूछिए कि हमारे जीवन में इतने दुख क्यों आते हैं? हम कब तक इस तरह की तकलीफों का सामना करेंगे? वर्षों से वन में घूम रहे हैं। जरा सा सुख आता है, उससे ज्यादा दुख आ जाता है। कभी-कभी पीने का पानी और खाना तक नहीं मिलता है। एक बार तो भगवान से कहिए- हमारे जीवन में इतनी परेशानियां क्यों हैं?’
युधिष्ठिर बोले, ‘देवी, जब मैं ध्यान करके भगवान से मिलता हूं तो उनसे कुछ मांग नहीं सकता। ये तो सौदा हो जाएगा। मुझे परमात्मा से जुड़ने पर बहुत प्रसन्नता मिलती है। मैं कुछ मांगने या पूछने के लिए ध्यान नहीं करता हूं। मैं भगवान से इसलिए जुड़ता हूं, ताकि मेरा मन प्रसन्न हो। यही प्रसन्नता मेरी ताकत बन जाती है। यही प्रसन्नता हमारा हथियार है। बुरे समय में हम इसी हथियार से लड़ते हैं और जीतते हैं।’
सीख- जो लोग पूजा के बदल कुछ मांगते हैं, वे भगवान से सौदा करते हैं। जबकि पूजा-पाठ निस्वार्थ भाव से करनी चाहिए। ऐसी पूजा से प्रसन्नता मिलती है। आत्मविश्वास बढ़ता है। मन शांत होता है और जो शक्ति मिलती है, उससे हम परेशानियों से लड़ पाते हैं।