Home शख़्सियत माता अमृतानंदमयी

माता अमृतानंदमयी

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माता अमृतानंदमयी देवी का जन्म 27 सितंबर 1953 को पर पर्यकडवु केरल में हुआ था । वह एक आध्यात्मिक नेत्री वह गुरु है । जिन्हें उनके अनुयाई संत के रूप में सम्मान देते हैं उन्हें लोग अम्मा या मां के नाम से भी जानते हैं ।

9 वर्ष की आयु में ही उनका विद्यालय जाना बंद हो गया था वह पूरे समय अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल और घर के काम करती थी । उन दिनों अधिक निर्धनता और अन्य लोगों के कष्टों के कारण अत्यधिक दुख से गुजर रही थी ।

अन्य लोगों के कष्ट के लिए वह अपने घर से खाना और वस्त्र लाती थी । उनका परिवार जो कि धनवान नहीं था इसके लिए उन्हें डांटता था । अम्मा कभी-कभी अचानक उन लोगो को दुख से राहत पहुंचाने के लिए उन्हें गले से लगा लेती थी । जबकि उस समय एक 14 वर्ष की कन्या को किसी को भी स्पर्श करने की आज्ञा नहीं दी जाती थी । खास तौर पर पुरुषों को स्पर्श करने की अपने माता-पिता से विपरीत प्रतिक्रिया आने के बावजूद अम्मा ऐसा ही करती थी |

अम्मा कहती थी “मैं यह नहीं देखती कि वह एक स्त्री है या पुरुष मैं किसी को भी स्वयं से भिन्न रूप में नहीं देखती मुझसे संसार की सभी रचनाओं की ओर एक निरंतर प्रेम धारा बहती है । यह मेरा जन्मजात स्वभाव है एक चिकित्सक का कर्तव्य रोगियों का उपचार करना होता है इसी प्रकार मेरा कर्तव्य उन लोगों को सांत्वना देना है जो कष्ट में है” |

उनके माता-पिता के द्वारा कई बार उनका विवाह कराने की कोशिश की गई पर अम्मा ने सभी निवेदको को अस्वीकार कर दिया । 1981 में जब अनेकों जिज्ञासु, उनके गांव पर्यकडवु मैं आकर मां के शिष्य बनने उनके माता-पिता की संपत्ति में रहने लगे तो उनके गांव में एक विश्वस्तरीय संगठन माता अमृतानंदमई मठ की स्थापना की गई । अम्मा इस मठ की अध्यक्ष थी ।

अम्मा के विश्वव्यापी धर्मार्थ मिशन में बेघर लोगों के लिए 100,000 घर, 3 अनाथ आश्रम बनाने का कार्यक्रम और 2004 में भारतीय सागर में सुनामी जैसी आपदाओं से सामना होने की अवस्था में राहत-और-पुनर्वास, मुफ्त चिकित्सकीय देखभाल, विधवाओं और असमर्थ व्यक्तियों के लिए पेंशन, पर्यावरणीय सुरक्षा समूह, मलिन बस्तियों का नवीनीकरण, वृद्धों के लिए देखभाल केंद्र और गरीबों के लिए मुफ्त वस्त्र और भोजन आदि कार्यक्रम सम्मिलित हैं। यह परियोजनाएं अनेकों संगठनों द्वारा संचालित की जाती हैं जिसमे माता अमृतानंदमयी मठ (भारत), माता अमृतानंदमयी सेंटर (संयुक्त राज्य अमेरिका), अम्मा-यूरोप, अम्मा-जापान, अम्मा-केन्या, अम्मा-ऑस्ट्रेलिया आदि शामिल हैं। यह सभी संगठन संयुक्त रूप से एम्ब्रेसिंग द वर्ल्ड (विश्व को गले लगाने वाले) के रूप में जाने जाते हैं।

जब 2004 में उनसे यह पूछा गया कि उनके धर्मार्थ मिशन का विकास कैसा चल रहा है तो अम्मा ने कहा, “जहां तक गतिविधियों की बात है यह किसी योजना पर आधारित नहीं हैं। सब कुछ सहज रूप से होता है। ग़रीबों और व्यथित लोगों की दुर्दशा देखकर एक कार्य ही दूसरे कार्य का माध्यम बना. अम्मा प्रत्येक व्यक्ति से मिलती हैं, वे प्रत्यक्ष ही उनकी समस्याओं को देखती हैं और उनके कष्टों को दूर करने का प्रयास करती हैं। ॐ लोकाः समस्ताः सुखिनो भवन्तु, यह सनातन धर्मं के प्रमुख मन्त्रों में से एक है, जिसका अर्थ होता है, ‘इस संसार के सभी प्राणी प्रसन्न और शांतिपूर्ण रहें.’ इस मंत्र की भावना को ही कर्म का माध्यम बनाया गया है।”

अधिकांश कार्य स्वयंसेवकों द्वारा आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में किया जाता है। “यह अम्मा की इच्छा है कि उनके सभी बच्चे इस विश्व में प्रेम और शांति के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें. अम्मा कहती हैं “ग़रीबों तथा पीड़ितों के लिए सच्ची करुणा ही ईश्वर के प्रति सच्चा प्रेम और भक्ति है।” “मेरे बच्चे उन्हें भोजन कराते हैं जो भूखे हैं, ग़रीबों की सहायता करते हैं, दुखी लोगों को सांत्वना देते हैं, पीड़ितों को राहत पहुंचाते हैं और सभी के प्रति दानशील हैं।”

अम्मा अपने भक्ति संगीत के लिए भी बहुत प्रसिद्ध हैं। उनके द्वारा गाये गए भजनों की 100 से अधिक रिकॉर्डिंग, 20 से भी अधिक भाषाओँ में उपलब्ध हैं। उन्होंने दर्ज़नों भजनों की रचना की है और उन्हें पारंपरिक रागों के अनुसार ढाला है। भक्ति गीतों को आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में गाये जाने के सम्बन्ध में अम्मा कहती हैं, “यदि भजनों को एकाग्रता के साथ गया जाये तो यह गायक, श्रोता और प्रकृति के लिए लाभप्रद होता है। बाद में जब श्रोता भजन पर विचार करते हैं तो वे भजनों में उच्चारित पाठों के अनुरूप रहने का प्रयास करते हैं।” अम्मा कहती हैं कि आज के संसार में, प्रायः लोगों के लिए ध्यान के दौरान एकाग्र होना कठिन हो जाता है, लेकिन भक्ति गायन के द्वारा यह एकाग्रता सरलता से प्राप्त की जा सकती है।

पद
  • संस्थापक और अध्यक्ष, माता अमृतानंदमयी मठ
  • संस्थापक, दुनिया को गले लगाते
  • कुलाधिपति, अमृता विश्व विद्यापीठम विश्वविद्यालय
  • संस्थापक, अमृता इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एआईएमएस (AIMS) अस्पताल)
  • पार्लियमेंट ऑफ़ द वर्ल्ड रिलीजन्स, इंटरनैशनल एड्वाइसरी कमेंटी मेंबर
  • द एलिजाह इंटरफेथ इंस्टिट्युट, मेंबर ऑफ़ द एलिजाह बोर्ड ऑफ़ वर्ल्ड रिलीजियस लीडर्स
पुरस्कार और सम्मान
  • 1993, ‘प्रेसिडेंट ऑफ़ द हिन्दू फेथ’ (पार्लियमेंट ऑफ़ द वर्ल्ड रिलिजन्स)
  • 1993, हिंदू पुनर्जागरण पुरस्कार (हिंदू धर्म आज)
  • 1998, केयर एंड शेयर इंटरनैशनल ह्यूमैनिटेरियन ऑफ़ द इयर अवॉर्ड (शिकागो)
  • 2002, कर्म योगी ऑफ़ द इयर (योग जर्नल)
  • 2002, द वर्ल्ड मूवमेंट फॉर नॉनवायलेंस द्वारा अहिंसा के लिए गांधी-किंग अवॉर्ड (यूएन (UN), जेनेवा)
  • 2005, सेंटेनरी लिजेंड्री अवॉर्ड ऑफ़ द इंटरनैशनल रोटैरियंस (कोचीन)
  • 2006, जेम्स पार्क मॉर्टन इंटरफेथ अवॉर्ड (न्यूयॉर्क)
  • 2006, द फिलॉसफर सेंट श्री ज्ञानेश्वर वर्ल्ड पीस प्राइज़ (पुणे)
  • 2007, ले प्रिक्स सिनेमा वेरिट (सिनेमा वेरिट, पैरिस
  • 2010, अपने बफैलो कैम्पस में 25 मई 2010 को मानवीय पत्र में स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ न्यूयॉर्क ने अम्मा को मानद् डॉक्टरेट से सम्मानित किया

 

अम्मा की इच्छा यह है कि उनके सभी बच्चे इस विश्व में प्रेम और शांति के प्रसार के लिए अपना जीवन समर्पित कर दें ।

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