Home धर्म/ज्योतिष इस शरद पूर्णिमा पर बन रहा है ये अद्भुत संयोग…

इस शरद पूर्णिमा पर बन रहा है ये अद्भुत संयोग…

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आश्विन मास की पूर्णिमा और गुरुवार का दिन। शरद पूर्णिमा पर अद्भत संयोग है। चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त होगा। रात्रि में अमृत कलश छलकेगा। इससे बढ़कर चांदनी रात कभी नहीं मिलती। यह दिन सरस्वती देवी की आराधना का है। गुरुवार को पूर्णिमा होने से शुभ लाभ दुगुना है। शरद पूर्णिमा सरस्वती देवी का दिन है। भगवान श्रीकृष्ण के रासमंडल का पर्व है। शास्त्रीय मान्यता यह है कि अधिकांश कला की उत्पत्ति शरद पूर्णिमा पर ही हुई है। चाहे वह साहित्य हो, संगीत हो, कला हो, शिल्प हो। शरद पूर्णिमा पर सरस्वती देवी की आराधना करनी चाहिए। रात को चोलों को दूध में भिगोकर शरद पूर्णिमा की रातभर रखा जाता है। सवेरे उसका प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस दिन सरस्वती देवी की आराधना करके सफेद पुष्प चढाने से सफलता मिलती है। भाग्य का उदय होता है। सरस्वती देवी का जाप स्फटिक की माला से करें। एक से पांच तक जो भी सहज लगे, उसको करें।

ऊं ऐं ऊं

सरस्वती देवी की पूजा से मिलती हैं ये 16 चीजें

1. श्री संपदा : श्री कला से संपन्न व्यक्ति के पास लक्ष्मी का स्थायी निवास होता है।

2. भू संपदा : जमीन-जायदाद

3. कीर्ति संपदा : शरद पूर्णिमा पर सरस्वती देवी की पूजा से कीर्ति प्राप्त होती है।

4. वाणी सम्मोहन : साक्षात सरस्वती वाणी में प्रवास करती हैं। वाणी में सम्मोहन आता है।

5. लीला : ईश्वरीय कृपा, शुभ कर्म फल प्रदान करते हैं।

6. कांतिः शारीरिक सौंदर्य और स्वास्थ्य प्राप्त होता है। तेज बढ़ता है।

7. विद्याः समस्त प्रकार की विद्या मिलती हैं। कला, संगीत और साहित्यप्रेमियों को इस दिन कुछ न कुछ सृजन अवश्य करना चाहिए।

8. विमलाः मन स्थिर रहता है। चंचलता शांत होती है।

9. उत्कर्षिणि : मानसिक तेज मिलता है। कर्म प्रधानता बढ़ती है। लक्ष्य और इच्छाएं पूरी होती हैं।

10. विवेक : विवेकशीलता से सारे मार्ग प्रशस्त होते हैं।

11. कर्मण्यताः  कर्मशीलता बढ़ती है। स्वावलंबन मिलता है।

12. योगशक्तिः  इंद्रियां नियंत्रित रहती हैं। मन की वाचालता शांत होती है।

13. विनयः अहंकार का अंत होता है। व्यवहारकुशलता मिलती है।

14. सत्य-धारणाः सत्य के मार्ग पर चलने की शक्ति-प्रेरणा मिलती है।

15. आधिपत्य : समस्त गुणों का स्वामी होकर उसका आधिपत्य बढ़ता है।

16. अनुग्रह: परोपकार की भावना विकसित होती है।

आमतौर पर हम सुनते हैं कि चंद्रमा में सोलह कलाएं होती हैं। भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं का स्वामी कहा गया है तो राम को बारह कलाओं का। दोनों ही पूर्णावतार हैं। इसकी अलग-अलग व्याख्या मिलती हैं। कुछ की राय में भगवान राम सूर्यवंशी थे तो उनमें बारह कलाएं थीं। श्रीकृष्ण चंद्रवंशी थे तो उनमें सोलह कलाएं थीं।  वर्षभर में शरद पूर्णिमा के ही दिन चांद सोलह कलाओं का होता है। इस रात चांद की छटा अलग ही होती है जो पूरे वर्ष कभी दिखाई नहीं देती। चांद को लेकर जितनी भी उपमाएं दी जाती हैं, वह सभी शरद पूर्णिमा पर केंद्रित हैं।

चन्द्रमा की सोलह कला :

अमृत, मनदा ( विचार), पुष्प ( सौंदर्य), पुष्टि ( स्वस्थता), तुष्टि( इच्छापूर्ति), ध्रुति ( विद्या), शाशनी ( तेज), चंद्रिका ( शांति),कांति (कीर्ति), ज्योत्सना ( प्रकाश), श्री (धन), प्रीति ( प्रेम),अंगदा (स्थायित्व), पूर्ण ( पूर्णता अर्थात कर्मशीलता) और पूर्णामृत (सुख)।  चंद्रमा के प्रकाश की 16 अवस्थाएं हैं।मनुष्य के मन में भी एक प्रकाश है। मन ही चंद्रमा है। चंद्रमा जैसे घटता-बढ़ता रहता है। मन की स्थिति भी यही होती है।

मनुष्य में होती हैं पांच से आठ कलाएं

सामान्य रूप से मनुष्य में सिर्फ पांच से आठ कलाएं होती हैं। पाक-कला, कला, साहित्य,संगीत, , शिल्प, सौंदर्य, शस्त्र और शास्त्र होते हैं। इनके विभिन्न रूप होते हैं। पांच कलाओं से कम पर पशु योनि बनती हैं। ईश्वरीय अवतार बारह से सोलह कलाओं के स्वामी होते हैं। हमारी सृष्टि और समष्टि सूर्य और चंद्रमा पर केंद्रित होती है। सूर्य हमारी ऊर्जा की शक्ति है तो चंद्रमा हमारे सौंदर्यबोध, हमारे विचार और मन का स्वामी है। चंद्रमा चूंकि पृथ्वी के सर्वाधिक निकट होता है। इसलिए, उसका प्रभाव हमारे जीवन और मानसिक स्थिति पर भी पड़ता है। सोलह कलाओं का स्वामी होने से शरद पूर्णिमा परम सौभाग्यशाली मानी जाती है।

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