प्रदेश में महिला सशक्तिकरण की दिशा में राज्य सरकार ने मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान के नेतृत्व में व्यापक और प्रभावी पहल की है। मुख्यमंत्री श्री चौहान का मानना है कि आर्थिक स्वावलम्बन से ही महिला सशक्तिकरण का मार्ग प्रशस्त होता है। महिलाओं में उद्यमिता और कौशल के जो नैसर्गिक गुण होते हैं उससे महिलाएँ सहजता से आर्थिक स्वावलम्बन के लक्ष्य को प्राप्त कर लेती हैं।
मध्यप्रदेश राज्य महिला वित्त एवं विकास निगम द्वारा इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिये प्रदेश में ‘तेजस्विनी’ ग्रामीण महिला सशक्तिकरण कार्यक्रम चलाया जा रहा है। वर्ष 2007 से प्रदेश के छ: जिलों डिंडौरी, मण्डला, बालाघाट, पन्ना, छतरपुर और टीकमगढ़ में यह कार्यक्रम आरम्भ किया गया था। कार्यक्रम वर्ष 2018- 19 तक जारी रहेगा।
दो लाख से अधिक महिलाएँ आर्थिक गतिविधियों से जुड़ीं
छ: जिलों में चलाये जा रहे इस कार्यक्रम में वर्ष 2016 -17 तक 16 हजार 261 महिला स्व-सहायता समूहों का गठन हो चुका है। इन समूहों से जुड़कर 2 लाख 05 हजार 644 महिलाएँ लाभ पा रही हैं। कार्यक्रम के तहत इन छ: जिलों में प्रत्येक ग्राम में चार से पाँच स्व-सहायता समूहों को मिलाकर एक ग्राम स्तरीय समितियाँ भी गठित की गई है। सभी छ: जिलों में वर्ष 2016-17 तक 2,682 गाँवों में कुल 2,629 ग्राम स्तरीय समितियाँ कार्यरत है।
स्व-सहायता समूहों की शीर्ष संस्थाओं के रूप में साठ स्थानों पर साठ फेडरेशन (परिसंघ) भी गठित किये गये हैं। प्रत्येक फेडरेशन में तीन से साढ़े तीन हजार तक महिला सदस्य हैं। फेडरेशन स्वतंत्र रूप से स्व-सहायता समूहों के गठन, सुदृढ़ीकरण और ग्रेडिंग का कार्य कर रहे हैं। फेडरेशन के सदस्यों को इसके लिये विधिवत प्रशिक्षित किया जाता है।
फेडरेशन के सदस्य सरकार द्वारा चलाये जा रहे विभिन्न सामाजिक कार्यों में भी सहयोग और योगदान देते हैँ। पिछले कुछ समय में नकदी रहित लेन-देन, नमामि देवी नर्मदे-सेवा यात्रा, सिंहस्थ महाकुम्भ आयोजन, राष्ट्रीय स्वच्छता अभियान, शौचालय निर्माण जन अभियान जैसे अनेक राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक आयोजन में इन फेडरेशन के सदस्य सक्रिय रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र संघ में बजा इस नवाचार का डंका
डिण्डोरी जिले में कोदो-कुटकी जैसे मोटे अनाज के स्व-सहायता समूह के माध्यम से विपणन के प्रभावी प्रबन्धन से जनजातीय आबादी वाले इलाकों में जीविकोपार्जन का जो नवाचार तेजस्विनी योजना से आरम्भ हुआ था उसकी व्यापक चर्चा रही। महिला सशक्तिकरण पर संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय न्यूयार्क में जब वैश्विक समागम हुआ तो डिण्डोरी की तेजस्विनी स्व-सहायता समूह की श्रीमती रेखा पन्द्राम को न्यूयॉर्क आमंत्रित किया गया। संयुक्त राष्ट्र संघ की इस प्रस्तुति से तेजस्विनी स्व-सहायता समूह को अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिली।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत जीविकोपार्जन के सब्जी उत्पादन के 29, बकरी पालन के 22, दुधारु पशुओं के पालन और कोदो-कुटकी उत्पादन के चार-चार तथा कोकून माला निर्माण का एक स्व- सहायता समूह गठित किया गया है।
एचएचजी से महिला सशक्तिकरण ही है कार्यक्रम का प्रमुख उद्देश्य
इस कार्यक्रम का उद्देश्य मजबूत और निरन्तरता वाले महिला स्व-सहायता समूहों तथा उनकी शीर्ष संस्थाओं का गठन व विकास करना, इन समूहों और संस्थाओं को सूक्ष्म वित्तीय सुविधाओं से जोड़ना और समूहों को बेहतर आजीविका के अवसर तलाशने तथा इनका उपयोग करने के लिये योग्य बनाना है। कार्यक्रम का एक और उद्देश्य समूहों को सामाजिक समानता, न्याय और विकास की गतिविधियों के लिये सशक्त करना भी है। जैसे शिक्षा और स्वास्थ्य का प्रबन्धन करना, कड़ी मजदूरी में कमी लाना, पंचायत में पूर्ण भागीदारी देना और महिलाओं के विरुद्ध हिंसा और अपराध को समाप्त करना। तेजस्विनी योजना के पाँच प्रमुख घटक हैं -सामुदायिक संस्था विकास, सूक्ष्म वित्त सेवाएँ, आजीविका व उद्यमिता और विकास, महिला सशक्तिकरण, सामाजिक न्याय एवं समानता और प्रोग्राम प्रबन्धन।
एसएचजी के गठन से साकार हुआ आर्थिक स्वावलम्बन का सपना
मु्र्गीपालन से जीविकोपार्जन के लिए टीकमगढ़ जिले की मलगुवां की महिलाओं को जब लगा कि सदस्यों से अंश पूँजी जुटाना समभव नहीँ है तो समूह ने एक निजी वित्तीय कम्पनी ‘संघमित्रा फायनेन्स’ से पिचहत्तर हजार रुपये का ऋण लेकर मुर्गी पालन का व्यवसाय आरम्भ किया और आज इससे बड़ा लाभ कमा रही हैं। सफलता की यही कहानी कमोबेश बालाघाट जिले के कटंगा गाँव की है जहाँ अस्सी फीसदी महिलाएँ सब्जी उत्पादन से जुड़ीं हैं। इसी जिले के कुरेण्डा गाँव में सजोरपेन स्व-सहायता समूह की महिलाओं ने स्थाई व्यवसाय के लिए मछली पालन का व्यवसाय चुना है। पहले पंचायत से तालाब में मछली पालन की अनुमति ली। फिर निवेश का पैसा जुटाया और मत्स्य-पालन विभाग से मछली पालन का प्रशिक्षण लिया। आज समूह की सदस्य महिलाएँ पर्याप्त लाभ कमा रही हैं।
नाम में जब ‘ संस्कार ‘ शब्द जुड़ा तो महिलाओं ने व्यवसाय ही बदल लिया
छतरपुर जिले के बाजना गाँव की महिलाएँ घरों में ही बीड़ी बनाने का काम करतीं थीं। तेजस्विनी योजना .के अन्तर्गत गाँव की महिलाओं ने जब स्व सहायता समूह का नाम ‘माँ सरस्वती संस्कार स्व सहायता समूह’ रखा तो महिलाओं को लगा वे बीड़ी बनाकर जन-स्वास्थ्य को खतरे में डाल रहीं हैं। बस फिर क्या था उन्होंने एक बड़ा निर्णय लिया और ईंट भट्टे का काम शुरू किया।
आज समूह की आमदनी भी पहले से ज्यादा है और समूह की जमा पूँजी 70 हजार रुपये है। छतरपुर नगर में ही जनजातीय आबादी बहुल बस्ती में किराना दुकान हो या फिर छतरपुर-पन्ना मार्ग पर गाँव बमीठा का महिला स्त्र-सहायता समूह का बैण्ड बाजा व्यवसाय, सभी से महिलाओं के आर्थिक स्वावलंबन का मार्ग प्रशस्त हुआ है। ऊपर की चार कहानियाँ एक बानगी भर हैं। कार्यक्रम क्षेत्र के सभी छह जिलों में इस तरह की कहानियाँ लिखी गई हैं और लिखी जा रही हैं।